अच्छा वर्कर बनना बहुत कठिन भी है, बहुत आसान भी. कई बार दिन-भर काम में गधे की तरह खटने वाले जांबाज़ वर्कर भी बॉस के सामने एक जम्हाई ले लेते हैं, और अपने तमाम कैरियर पर कालिख पुतवा लेते हैं. दूसरी तरफ कई बार दिन भर फली के दो टूक न करने वाले कर्मासुर लोग "बॉस" के सामने पड़ने पर फाइलें लेकर थिरकते पाए जाते हैं, और 'प्रमोशनों' को प्राप्त होते हैं. इस तरह अच्छा वर्कर बनने के लिए काम जानना या करना नहीं, बल्कि बॉस की निगाह के 'रैम्प' पर सधी चाल से चलना आना चाहिए. यह सूत्र इतना अद्भुत और अलौकिक है की बॉस के सामने न होने पर भी काम करता है.
पुरानी बात है. उन दिनों मैं एक विश्व-विद्यालय का प्रशासन और जनसंपर्क अधिकारी था. वहां एक समारोह में एक बड़े नेता आये. हमारे चांसलर कुछ अस्वस्थ होने के कारण उन नेता की चाल से चाल नहीं मिला पा रहे थे. अतः वे एक जगह रुक गए, और विद्यार्थियों द्वारा लगाईं गई चित्र-प्रदर्शनी का अवलोकन करवाने के लिए मुझे उन नेता को ले जाना पड़ा. मैं उनके साथ चलते हुए उन्हें बच्चों के काम की विशेषताओं और मेहनत के बारे में बताता जा रहा था.वे तेज़ी से चलते जा रहे थे. रुक कर बच्चों से कोई बात न करने और काम को ध्यान से न देखने के कारण बच्चों में निराशा घर करती जा रही थी. मैं विद्यार्थियों के चेहरों से यह भांप रहा था. मैंने तभी नेता का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक दीवार-चित्र के बारे में उन्हें बताया-यह देखिये, इसे बच्चों ने "इटली" मार्बल पर बड़ी मेहनत से बनाया है. मेरी तरकीब ने काम किया, वे आगे बढ़ जाने के बावजूद वापस लौटे, और उस चित्र को छू-छू कर देखने लगे. बच्चों को भी अच्छा लगा.
अब एक राज़ की बात आपको भी बता दूं. काम मेरी तरकीब या बच्चों की मेहनत ने नहीं किया था, बल्कि "बॉस थ्योरी" ने किया था. अब आप समझ ही गए होंगे कि नेताजी कौन थे?बिलकुल ठीक पहचाना. हमारे प्रधान-मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी. अब बॉस आप पहचानिए.
जय हो!
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