Sunday, July 17, 2011

संयोग से बने चैम्पियनों के देश कभी नहीं रहे ब्राजील और अर्जेंटिना



एम् ऍफ़ हुसैन के जीवन में एक ऐसा अवसर भी आया था जब उन्होंने अपने सब चित्र फाड़ने चाहे थे. हाल ही में भारत में कुछ शोध कर चुके युवाओं ने अपनी डिग्रियां फाड़ डालीं. लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना के बाद पद से इस्तीफा देना चाहा तो उसे फाड़ कर फैंक दिया गया. 
दूसरी तरफ भारत में ऐसे भी अवसर आये जब जनता ने किसी नेता के कपड़े फाड़ने चाहे, पर उसके सुरक्षा-कर्मियों ने उसे बचा लिया. किसी भी क्षेत्र में ऐसे अवसर आते हैं, जब निराशा-हताशा उपजती है. इस स्थिति को जीत लेना ही पराक्रम है. इसी से छवि बनती है. लेकिन छवियों को बनाने से कहीं ज्यादा मुश्किल काम होता है छवियों को बनाए रखना. 
ब्राज़ील और अर्जेंटीना जैसे देशों को खेल जगत में अपनी छवि सस्ते में नहीं मिली. ये देश बचपन से अपने रहवासियों को विजेता बनने का सपना दिखाते हैं. वह सपना, जिसे देखने के बाद इंसान का नींद से रिश्ता ही टूट जाये. सपनों को हकीकत में बदलने की कला दक्षिण अमेरिकी देशों में हवा में घुली है. 

1 comment:

  1. sahi kaha hai hatasha ko jeet lena hi parakram hai.bahut achchi seekh deti hui post ke liye aabhar.

    ReplyDelete

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...