Saturday, April 30, 2011

शिक्षा

एक बूढ़े के पास एक खेत था. पुराना. पुश्तैनी. कितनी भी मुसीबतें आयें , वह बाप-दादा के उस खेत को छोड़ता न था. वह खेत था भी जादुई चिराग . बूढा उसमे हल चलाता , बीज रोपता , खाद-पानी देता और खेत लहलहाने लगता. घर की रोटी भी निकलती और चार पैसे भी बचते. पैसा बचा-बचा कर बूढ़े ने अपने बेटे को पढ़ा दिया. उसे काबिल बना दिया. बेटा काबिल बन गया. अब रोज़  सुबह उठते समय सोचता,आज ज़मीन पचास हज़ार की है, अगले साल एक लाख की हो जाएगी, पांच साल बाद दस लाख की. ...यही सब सोचता हुआ वह पैसा उधार लेकर बाज़ार से घर का सब सामान लाता और फिर लम्बी तान कर सो जाता. बूढा हैरानी से देखता. उसे कुछ समझ में नहीं आता. वह सोचता इसे आराम से सोते-सोते पैसा कमाने का गुर "शिक्षा " से आया या मेरी मेहनत से? उसने सोचा- ऐसे तो ये पड़ा-पड़ा बीमार हो जायेगा. फिर इतनी महंगाई में इतना सारा उधार चुकाएगा कैसे? किसान चिंतित होते हुए एक साधू के पास गया और उसे अपनी व्यथा बताई. सब सुन कर साधू बोला, चिंता मत करो. बैठे-बैठे जब पैसे ख़तम हो जायेंगे और खेत भी बंज़र हो जायेगा, तो यह चोरी कर लेगा, डाका daal  लेगा, लोगों की जेब काटेगा.किसान घबरा कर बोला- तब तो इसे जेल हो जाएगी. साधू ने कहा- ऐसा कुछ नहीं होगा. तब तक राज्य के राजा, मंत्री, सिपाही सब चोर ही होंगे. इसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ेगा.किसान मायूसी से अपने खेत को देखता हुआ सोचने लगा- काश, मैं मरते समय अपना खेत अपने साथ ही ले जा पाता .  

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