Sunday, April 3, 2011

खोज सको तो खोजो

जो मेधावी बच्चे अभी पढ़ रहे हैं मैं उनसे एक आग्रह करना चाहता हूँ। हाँ, जो अच्छे जीवन-स्तर के लिए ज्यादा पैसा कमा कर बड़े पद पर नौकरी का लक्ष्य रखते हैं, उनसे मुझे कुछ नहीं कहना। परन्तु वैज्ञानिक सोच रखने वाले ऐसे बच्चे हैं , जो दुनिया के लिए महत्वपूर्ण आविष्कार करके अपना जीवन शोध, खोज और अध्ययन में बिताना चाहते हों वह मेरी बात पर गौर करें। हमें भविष्य के लिए एक ऐसे लिटमस टेस्ट की खोज चाहिए, जिसका प्रस्ताविक प्रारूप इन्सान के पैदा होते ही एक टीके के रूप में उसके शरीर में रोपा जा सके। फिर जिस तरह टीकाकरण से किसी बीमारी के कीटाणु शरीर में नहीं पनपते हैं, वैसे ही बेईमानी और भ्रष्टाचरण का विषाणु भी इन्सान के शरीर में नहीं पनप पाए। यदि परिस्थिति वश या वंशानुगत कारणों से यह पनप भी जाये तो जिस तरह रासायनिक क्रिया से लिटमस का रंग बदल जाता है, उसी तरह उस इन्सान के मुंह का रंग भी किसी खास रंग में बदल जाये। यह काला या गोरा न होकर आविष्कार-करता की पसंदानुसार लाल, नीला, पीला कैसा भी हो सकता है। हरा या गुलाबी भी। फिर वह शख्स दिन में लोगों के बीच निकल ना पाए और रात के अँधेरे में दबे पांव बिल्लिओं की भांति निकले भी तो उसके नए रंग से सर्च लाईट की तरह तेज़ रश्मियाँ निकलें या उसके शरीर से तेज़ घंटियाँ बजें। यदि कोई विलक्षण बालक ऐसा आविष्कार कर पाता है तो शायद उसका नाम न्यूटन, डार्विन या आर्किमिडिज़ के चमकते नामों से भी ऊपर लिखने की बात भविष्य सोचे, यह एक ऐसा आविष्कार होगा जो बाकी सभी खोजों पर पानी फिरने से बचा सके।

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