प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Tuesday, April 12, 2011
निवेश का शानदार अवसर
क्या आपने एक बात पर ध्यान दिया? एक तरफ तो हम मेडिकल सुविधाओं के लगातार बढ़ते जाने के कारण लम्बी उम्र पाने लगे हैं, दूसरी तरफ हर काम में तकनीकी सुविधाओं और यंत्रों के आते जाने से हमारा समय और श्रम बचने लगा है। फिर जो ज्ञान और अनुभव हम पहले बरसों जीने के बाद पाते थे , वह अब हमें पलक झपकते ही हासिल होने लगा है। खेलों की एक एक बारीकी जो खेल मैदानों पर कई दिन तक खेल को देखने के बाद बच्चों को जानने को मिलती थी , वह अब बच्चे टीवी पर थोड़ी ही देर में जान लेते हैं। पहले ज्ञान के लिए गुरु तलाशने और वहां तक पहुँचने में बहुत श्रम और समय लगता था, अब ज्ञान हर सुबह खुद हमारे द्वार पर दस्तक दे देता है। इस इतनी बड़ी सुविधा का क्या हमको कुछ लाभ नहीं उठाना चाहिए? मुझे तो लगता है कि ज़रूर उठाना चाहिए। एक छोटी सी कल्पना कीजिये। एक खेत में किसी अनाज के एक दाने को उगने के बाद से कहाँ-कहाँ का सफ़र करना पड़ता है? वह खेत से बोरा बंद होकर गोदाम में आता है, फिर किसी मण्डी के रास्ते किसी दुकान पर, और तब बिक कर किसी ग्राहक की रसोई में।यहाँ वह भोजन बनने के समय अपने अंतिम लक्ष्य पर आता है। गृहणी या रसोइया उसे धो कर या साफ करके किसी बर्तन में पकने के लिए चढ़ा देते हैं। तब वह आपकी खाने की मेज़ पर आता है , और अपने सारे गुणों के साथ आपके उदर में समां जाता है।इस पूरी प्रक्रिया में हर जगह उस दाने के कुछ साथी छिटक कर इधर-उधर ज़रूर गिरते हैं। उसी तरह जीवन में भी कुछ बच्चे या लोग अपने गंतव्य से भटक कर इधर-उधर छूट जाते हैं।अपना बचा हुआ समय, धन और ध्यान उनके हित में लगाइए।
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हम मेज़ लगाना सीख गए!
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