प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Thursday, April 7, 2011
पहले लंका जीती अब शंका
भारत में क्रिकेट फिर शुरू हो रहा है। आई पी एल के मैचों का लम्बा-चौड़ा कार्यक्रम अख़बारों और मीडिया में छा गया है।देश के युवा एक बार फिर अपने को व्यस्त बना लेंगे। माहौल उल्लास भरा हो जायेगा।देश जीवंत और खुश दिखाई दे , भला इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है? यह तो वे साँझ और सवेरे हैं ही, जिनके लिए हम सब लोग जी रहे हैं। लेकिन एक छोटी सी शंका आज भी सर उठा रही है। मुझे अच्छी तरह याद है कि १९८३ में समाजवादी नेता, जो बाद में देश के प्रधान-मंत्री भी बने, चन्द्र शेखर ने तत्कालीन राज नैतिक परिस्थितियों के विरुद्ध जनता को आकर्षित करने के लिए कई दिन तक देश के विभिन्न भागों से होते हुए पद-यात्रा की थी। किन्तु संयोग से जिस दिन उन्होंने अपनी यात्रा पूरी की, उसी दिन कपिल देव के नेतृत्व में भारत अपना पहला वर्ल्ड-कप जीत गया । ऐसे में देश विदेश के तमाम अख़बारों ,उस समय इलेक्ट्रोनिक मीडिया इतना ज़बरदस्त नहीं था, में कपिल देव की तस्वीर और जीत की ख़बरों में चन्द्र शेखर की खबर एक छोटे से कौने में दब कर रह गयी। अब ऐसे में मेरी शंका का कारन यही है कि मीडिया को एक म्यान में दो तलवारें आज भी पसंद नहीं हैं। वह तो जिस खबर को छुएंगे , उसी पर जान लड़ा देंगे। अन्ना हजारे चेहरे-मोहरे से भी कोई ज्यादा आकर्षक नहीं हैं।
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सत्यमेवजयते. यह अलग बात है कि मीडिया को अभी तो अन्ना हजारे ही खूबसूरत दिखलाई पड़ रहें है.कब रंग बदलेगा यह देखने कि बात है.
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर भी आईये न.