कल भारत और अमेरिका के बारे में सोचते-सोचते मुझे अचानक डॉ धर्मवीर भारती की याद आ गयी। उनसे एक बार छोटी और बड़ी पत्रिकाओं को लेकर मेरी काफी देर तक चर्चा हुई। वे उन दिनों ' धर्मयुग ' के संपादक थे , जो हिंदी की उस समय देश की सबसे बड़ी पत्रिका मानी जाती थी। वे अक्सर लघु पत्रिकाओं के संपादकों से नाराज़ रहते थे। वे कहते थे कि ये लोग अपनी पत्रिकाओं में बड़ी और व्यावसायिक पत्रिकाओं की आलोचना करते रहते हैं पर चुपचाप इन्ही में छपने को लालायित रहते हैं। सच कहूं तो मुझे भी उनकी बात में सच्चाई नज़र आती थी। कई छोटी पत्रिकाओं के मेरे मित्र संपादक लगातार धर्मयुग,सारिका,इंडिया-टुडे जैसी पत्रिकाओं में अपनी रचनाएँ भेजते और उनकी स्वीकृति का इंतजार करते रहते थे। मुझे लगता था कि व्यावसायिकता कहाँ नहीं हैं? क्या जो पत्रिका निकालेगा वह अपना लगाया हुआ धन लौटते हुए नहीं देखना चाहेगा? न जाने क्यों हर बात को अपने पक्ष में ही सोचने की हमारी मानसिकता बन जाती है।गुटबाजी और वर्गभेद भी इसी मानसिकता की देन है। यद्यपि मैं यह भी मानता हूँ कि हर समय , हर बात में सर्वश्रेष्ठ को स्वीकार करना भी बाकी लोगों की उन्नति में बाधक हो सकता है। दिलीप में थोड़ी कमी निकाल कर ही कोई अमिताभ, और अमिताभ में थोड़ी कमी बता कर ही कोई शाहरुख़ बनता है। लेकिन भारत के लिए अमेरिका बनना अभी काफी दूर की कौड़ी है। इस लिए हम अपने में सच को स्वीकार करने की कुव्वत पैदा करके ही अपना भविष्य सुनहरा बना सकते हैं। किसी को कोसना तो बहुत आसान है।हम अमेरिका की सदाशयता के रास्ते बड़प्पन खोजने की भावना का सम्मान क्यों न करें?
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हम मेज़ लगाना सीख गए!
ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...
Lokpriy ...
-
जिस तरह कुछ समय बाद अपने रहने की जगह की साफ़ सफाई की जाती है, वैसे ही अब यह भी ज़रूरी हो गया है कि हम अपने समय के शब्दकोषों की सफाई करें. ब...
-
जयपुर के ज्योति विद्यापीठ महिला विश्व विद्यालय की प्रथम वाइस-चांसलर,देश की प्रतिष्ठित वैज्ञानिक-शिक्षाविद प्रोफ़ेसर रेखा गोविल को "शिक्...
-
1. Abdul Bismillah 2. Abhimanyu Anat 3. Ajit Kumar 4. Alok Puranik 5. Amrit lal Vegad 6. Anjana Sandheer 7. Anurag Sharma"Smart ...
-
निसंदेह यदि कुत्ता सुस्त होगा तो लोमड़ी क्या,बिल्ली भी उस पर झपट्टा मार देगी। आलसी कुत्ते से चिड़िया भी नहीं डरती, लोमड़ी की तो बात ही क्या...
-
जब कोई किसी भी बात में सफल होता है तो उसकी कहानी उसकी "सक्सेज़ स्टोरी" के रूप में प्रचलित हो जाती है। लेकिन यदि कोई अपने मकसद...
-
"राही रैंकिंग -2015" हिंदी के 100 वर्तमान बड़े रचनाकार रैंक / नाम 1. मैत्रेयी पुष्पा 2. नरेंद्र कोहली 3. कृष्णा सोबती 4....
-
इस कशमकश से लगभग हर युवा कभी न कभी गुज़रता है कि वह अपने कैरियर के लिए निजी क्षेत्र को चुने, या सार्वजनिक। मतलब नौकरी प्राइवेट हो या सरकारी।...
-
कुछ लोग समझते हैं कि केवल सुन्दर,मनमोहक व सकारात्मक ही लिखा जाना चाहिए। नहीं-नहीं,साहित्य को इतना सजावटी बनाने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं ह...
बिल्कुल सही और स्पष्ट कहा है आपने। सहयोग हो या विरोध, यदि स्वार्थ से सना हो तो फिज़ूल है।
ReplyDeletemujhe kuchh aisi baten bataiye jahan aap bharat ki tulna me amerika ko kam pate hain. ve baten hamare logon ki hosla - afzai karengi.
ReplyDelete