प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Wednesday, April 20, 2011
ऐसे मुहावरे तो देश के बच्चे भी समझते हैं.
लोकपाल सर्वोपरि कहाँ है? देश का एक क्लर्क भी यदि अपना काम ईमानदारी से कर रहा है तो लोकपाल उसका क्या बिगड़ेगा? हाँ, यदि कोई बेईमानी होगी तो लोकपाल अपना दायित्व निभाएगा ही। जो लोग यह कह कर हल्ला मचा रहे हैं, कि लोकपाल प्रधान मंत्री से ऊपर कैसे हो सकता है, वह यह बात क्यों नहीं समझ रहे कि यदि प्रधान मंत्री अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में किसी नाजायज़ बात का सहारा नहीं ले रहा हो तो लोकपाल उसके ऊपर हरगिज़ नहीं है। पर यदि वह घोटालों या अनियमितता का सहारा ले रहा हो तब अवश्य लोकपाल को उसकी जाँच का दायित्व निभाना है। और यदि ऐसा है तो अपने पद की शपथ ले लेने के बाद वह यह सब करता हुआ प्रधान मंत्री रहा ही कहाँ। देश के हितों का कचूमर निकाल कर वह अपराधी तो पहले ही बन गया। अपराधी बनने के बाद तो लोकपाल क्या एक हवालदार तक को उसकी खबर लेने का हक़ होना चाहिए। यह प्रधान मंत्री पद कीगरिमा को गिराना नहीं बल्कि बचाना है।जो लोग यह कह कर शोर मचा रहे हैं कि लोकपाल प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति से ऊपर नहीं होना चाहिए, वे यह जानते ही नहीं कि लोकपाल बेईमानी के ऊपर होगा, चोरी के ऊपर होगा, भ्रष्टाचार के ऊपर होगा, न कि किसी पद के ऊपर। लेकिन फिर भी पहले से ही नेताओं को बचाने की मुद्रा में आ जाने वालों के लिए तो केवल यही कहा जा सकता है- चोर की दाढी में तिनका।ऐसा केवल तभी होता है जब देश या समाज में नैतिक मूल्य क्षत-विक्षत हो जाते हैं। यदि कोई जोर- शोर से कहे कि मोहल्ले में थाना नहीं बनना चाहिए, यह मोहल्ले का अपमान है, तो इसका मतलब सीधा-सीधा यही है कि ऐसा कहने वालों को ही ठाणे का डर ज्यादा है। इमानदार आदमी तो इस बात से खुश ही होगा कि सुरक्षा के उपाय किये जा रहे हैं।
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