किसी प्रशासक की टोन का असर तो होता ही है, वे शब्द भी ज़बरदस्त असर रखते हैं, जो किसी निर्देश के दौरान बोले जाते हैं. इनसे निर्देश ग्रहण करने वाले पर खासा प्रभाव बनाया जा सकता है. मेरे पड़ोस में एक वृद्ध महिला रहती थीं, जिनके बेटे और बहू भी उसी शहर में नौकरी करते थे.बेटे - बहू के जाने के बाद उन्हें घर पर रसोई बनाने वाली एक अन्य महिला के कार्य की देखभाल करनी होती थी, जिसके लिए वे तात्कालिक प्रशासक की भूमिका में होती थी. बहू कार्यालय से कभी - कभी फोन से उनके संपर्क में रहती थी . यदि महिला काम पर आने में थोड़ी देर करदे तो वृद्ध महिला से उसे सुनाई देता था-आ गयीं महारानी जी काम पे? इस व्यंग्यात्मक टोन से बचने के लिए महिला अक्सर समय पर आने का ध्यान रखती और अकारण विलम्ब से बचती. यदि कभी रोटी थोड़ी अधिक मात्रा में बन जाये तो उसे सुनना पड़ता था-ये अद्डूर तुमने किस के लिए चिन कर धर दिया? कभी टीवी पर किसी मनोरंजक कार्यक्रम की आवाज़ सुन कर यदि महिला उत्सुकतावश रसोई से कमरे में चली आये तो उसे कहा जाता- आज दीदे नाच-गाने में ही रमेंगे या खाना भी बनेगा? यदि भोजन में कोई कमी रह जाये या वह कुछ भूल जाये तो तत्काल लांछन आता-तुम्हें पर खोल कर उड़ने की पड़ी रहती है. गैस थोडा देर तक खुली रह जाने पर उनकी टिपण्णी होती- तुम सब फूंक के ही दम लोगी. रसोई की लाईट जली रह जाने पर वे कहतीं- ये झाद्फानूस सी चकाचौंध कौन सी बारात के लिए हुयी है? शब्द पैने भी होते हैं और ज़हरीले भी.
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
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हा भाषाई सभ्यता भी जरूरी है
ReplyDeleteaapki bat sahi hai, jahan bhasha ho vahan sabhyta honi hi chahiye. jahan bhasha n ho, ya dagmaga jaye , vastutah vahin se asabhyta ka samrajya paer pasaarta hai.
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