यन्त्र और भावनाओं में काम का बटवारा कैसे हो? अब यह भी जीवन-शास्त्र का एक महत्वपूर्ण भाग है। आप अपने किसी मित्र के जन्मदिन की पार्टी में जा रहे हैं , जो सातवीं मंजिल पर रहता है। आप बहुत प्रमुदित हैं, और आपके हाथों में ताज़ा फूलों का प्यारा सा गुलदस्ता है। अब बिल्डिंग के ठीक नीचे पहुँच कर आपने जाना कि लिफ्ट ख़राब है। लीजिये, अब सात मंजिल चढ़ाई की शुरुआत भी करनी है और अपने मन का उल्लास और तरोताजगी भी बनाये रखनी है।ख़राब मूड से जाकर मित्र से भी नहीं मिलना है, क्योंकि लिफ्ट की खराबी में उसका हाथ नहीं है। अब एक बड़ी ज़िम्मेदारी आप पर है। इसी तरह कल्पना कीजिये कि आपके ज़ेहन में कोई सार्थक सी कविता जन्म लेने को व्याकुल है और आप का कंप्यूटर चल नहीं रहा है। या फिर आपको अपने मनपसंद कार्यक्रम में पहुंचना है, और आपकी गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही। ऐसी बहुत सी बातें रसोई से लेकर सड़क तक आपके पास आती ही रहती है। यहाँ हमें इस कसौटी से निपटना पड़ता है कि अपने संवेगों और मशीनी सुविधाओं को लेकर हमारा संतुलन, धैर्य और द्रष्टिकोण कैसा है। निश्चित ही इन बातों का कोई सुनिश्चित जवाब नहीं है। आपको ' केस टू केस ' इनसे निपटना पड़ेगा। फिर भी सकारात्मकता की सरहद पर खड़े होने पर कुछ बातें ज़रूर हमारी मदद करेंगी। यहाँ एक मौलिक और आधारभूत विचार भी हमारी मदद करेगा। हम केवल यह सोचें कि यांत्रिक-आविष्कारों से पहले भी हम इन कामों को करते ही थे। हम शौकिया पहाड़ों तक पर चढ़ते थे।हम मीलों पैदल भी चला करते थे। हम माइक्रोवेव आने से पहले भी सीधी आंच पर लज़ीज़ व्यंजन बनाया करते थे। हमने बरसों तक पानी के छिडकाव से ही अपनी शामे ठंडी की हैं।हमारी बेहतरीन पुस्तकें कलम से लिखी गयी हैं।
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
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