Monday, February 18, 2013

श्रद्धा और जिजीविषा मिल कर रहें तो चमत्कार है

महाकुम्भ के पवित्र स्नान में शरीक होने वालों की संख्या करोड़ों में रही। दुनिया के दो तिहाई से ज्यादा देशों की जनसंख्या भी इतनी नहीं है, जितने लोग वहां संगम में नहा कर चले गए।
मेरे एक मित्र ने भी आनन-फानन में वहां जाने का कार्यक्रम बना लिया। लौट कर उन्होंने मुझे बताया कि  जब उन्होंने गंगाजल को एक बोतल में भर कर देखा तो वह शुद्ध नहीं था। नतीजा यह हुआ कि  उनके परिवार की कुछ महिलायें तो इसी कारण वहां स्नान के लिए भी तैयार नहीं हुईं।
समय-समय पर हमारे कुछ फिल्मकारों ने भी इस बात को कहने की कोशिश तरह-तरह से की है।
इसपर और कोई प्रतिक्रिया देने से पहले हम कुछ और बातों पर भी सोच लें-
1. जो गंगाजल अपने साथ में देश-विदेश के सुदूर स्थानों पर ले जाया जाता है, उसे पानी के उद्गम-स्थल से भरा जाना चाहिए।
2.वहां जाने वालों तथा वहां की व्यवस्था देखने वालों को भरसक इस बात का प्रयास करना चाहिए कि वहां  स्वच्छता रखी जा सके।
3. वहां पहुँचने की हमारी जिजीविषा तभी सार्थक है जब हम सम्पूर्ण उपक्रम के लिए पर्याप्त श्रद्धा भी रखें।जैसे जब एक डॉक्टर चिकित्सालय में जाता है तो उसे वहां कई घृणास्पद और उबकाई आने वाले दृश्य दिखाई दे सकते हैं, लेकिन जब वह यह सोचेगा कि  वह वहां किस पवित्र-पावन प्रयोजन से आया है, तो शायद वह वहां मन लगा कर रह सके।  

2 comments:

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