Thursday, February 16, 2012

अमेरिका, जापान, चाइना,फ़्रांस, जर्मनी, इटली, आस्ट्रेलिया आदि किसी को भी दिया जा सकता है ये टेंडर

कौन कहता है कि बड़े-बड़े देश छोटे काम नहीं कर सकते? कह कर तो देखिये, इतनी मदद तो हमारी कोई भी कर देगा. ऐसे कामों के लिए तो हम पैसे भी खर्च करने को तैयार रहते हैं. फिर हमारे तो विदेशों में जमा काले धन की पासबुकें ही इतनी आकर्षक  हैं कि बहुत से देश तो उन्हें देख कर ही हमारा काम करने को तैयार हो जायेंगे, पाकिस्तान जैसे. यह बात अलग है कि पाकिस्तान जैसों से काम नहीं हो पायेगा.
हाँ, पहले ये तो सुन लीजिये कि काम है क्या?
हमें अपने एक अरब बीस करोड़ भाई-बहनों  के लिए "टैटू" बनवाने हैं.ये काफी सिंपल से ही बनेंगे, ज्यादा डिज़ाइन वगैरा का काम नहीं है. नोटों की तरह इन पर गांधीजी का चेहरा बनाने की ज़रुरत नहीं है. हाँ, गाँधी लिखा जा सकता है, उसमें कोई आपत्ति नहीं है. वैसे भी इनके मैटर में लिखने का काम ही ज्यादा है. वैसे तो ये काम हम खुद भी कर सकते थे, घिसट-घिसट कर ही सही.पर वो क्या है कि हमारा संविधान हमें ऐसे काम खुद करने की इज़ाज़त नहीं देता. क्योंकि संविधान में लिखा हुआ है कि हमें ऐसी बातों को मिटाना है.
अब संविधान बनाने वाले तो खुद सब मिट गए, इसलिए हमें किसी का डर तो है नहीं, लिहाज़ा अब हमें हर भारतवासी के चेहरे[माथे को प्राथमिकता दी जाएगी] पर उसकी जाति लिखवानी है.किसी भारतीय  भाषा के चक्कर में पड़ने पर तो हम सब फिर आपस में लड़ मरेंगे, इसलिए विदेशों से टैटू बनवाना अच्छा रहेगा, उन्हें सब ख़ुशी से चिपका लेंगे.
नोट- टेंडर उसी को दिया जायेगा, जिसकी दरें चाहें कम-ज्यादा हों पर कमीशन सबसे ज्यादा हो.      

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

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