Saturday, February 11, 2012

जिंदगी भीख में नहीं मिलती, जिंदगी लड़ के छीनी जाती है

अखबार रोज़ आते हैं, लेकिन रोज़ ऐसी खबर नहीं लाते. ख़बरें तो रोज़ होती हैं, लेकिन ख़बरों में लिपट कर ऐसे अहसास रोज़ नहीं आते.
कल अखबार में एक छोटे से बच्चे की तस्वीर थी. वो कारों के एक काफिले के आगे खड़ा था.कारों पर बेतहाशा बर्फ की परत जमा थी. सड़क पर भी बर्फ ही बर्फ. तापमान माइनस बारह डिग्री से भी ज्यादा. देश अमेरिका. बच्चा चाइनीज़. हड्डियाँ गला देने वाली सर्दियों में बच्चा बिलकुल नंगे बदन. सिर्फ अंडरवियर और जूते. 
उस अखबार को देख कर भी कंपकंपी छूटती थी. भारत में यह दृश्य होता तो निश्चित ही देख कर ऐसा लगता कि माँ-बाप अपने किसी लाभ के लिए बच्चे की बलि चढ़ा रहे हैं. 
लेकिन अमेरिका में रह रहे वे चाइनीज़ माँ-बाप अपने स्वार्थ के लिए बच्चे की बलि नहीं चढ़ा रहे थे, बल्कि बच्चे के भविष्य में मज़बूत और सहनशील बनने की आस में उसे प्रशिक्षण दे रहे थे. जब बच्चे ने निरीहता से माता-पिता की ओर देखा तो उसे पिता से पुश-अप्स करने के निर्देश मिले. एक बार बच्चे ने थोड़ा घबरा कर माँ को आवाज़ लगाई. पर पिता ने उसकी गुहार को ना-मंज़ूर कर दिया और बच्चे को अपना साहसिक कारनामा जारी रखना पड़ा.इस रिपोर्ट से कुछ बातें सिद्ध हुईं. 
१.प्रकृति इंसान के स्थानीय भगवान के रूप में माँ को ही निर्धारित करती है. 
२.शारीरिक बल-प्रदर्शन वाले खेलों में चाइनीज़ युवाओं का प्रदर्शन आश्चर्यजनक रूप से प्रभावशाली शायद इसीलिए रहता है.
३.चाइना बच्चे-बच्चे में यह भावना कूट-कूट कर भरने में लगा है कि कल उसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देश का नागरिक बनना है. 
इस जज्बे  को हैरत भरी शुभकामनायें.       

2 comments:

  1. मगर किसी ने तो कहा था, "बिन मांगे मोती मिलें ..."

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  2. tumko to karodon saal hue batlao gagan-gambheer,is pyari-pyari duniya men kyon alag-alag takdeer... ye bhi to kahte hain log.

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