Saturday, February 18, 2012

आइये सराहें "जील "के ज़ज्बे को

"मेरी भाषा इतनी कड़क और कटु नहीं थी, लेकिन सत्ता की कारगुजारियों ने इसे ऐसा बना दिया."
आज अपने ब्लॉग पर ज़ील ने ऐसा ही कुछ लिखा है. इस ज़ज्बे पर गौर करते हुए फ़ख्र होता है.यही तो वह हथियार है जिस से कालांतर में सत्ता की गर्दन कट जाती है. एक सौ बीस करोड़ लोगों के देश में अगर सत्ता की मनमानी पर एक सौ बीस लोगों की भाषा का स्वाद भी  कड़वा हो जाये तो भविष्य उज्जवल है. उन्हें मेरी बधाई. शुरू में जब उनके ब्लॉग पर उनकी तस्वीर देखी थी तो मुझे लगा था कि वे अच्छी ग़ज़लें लिखेंगी, लेकिन उनके ब्लॉग का आज का तापमान बता रहा है कि उनके तेवर सत्ता के शेरों की "म्याऊँ"लिखेंगे.
यह सच है कि सत्ता में अगर अपराधियों और नाकारों की घुसपैठ हो जाती है तो आमआदमी का जीना दुश्वार हो जाता है.
मेक्सिको में तो लगभग १००० लोगों में १२ अपराधी हैं, अर्थात १.२ प्रतिशत. फिरभी पिछले छह सालों में पचास हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए.वहां के राष्ट्रपति ने खुद खड़े रह कर अपराधियों से ज़ब्त किये हथियारों को नष्ट करवाया. इधर तो चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश की ही बात कर लें. सभी दलों ने लगभग ३० प्रतिशत अपराधियों को टिकट देकर माननीय विधायक बनाने का पांसा फेंका. और उधर बन जाने के बाद उन्हें और हथियारों के लायसेंस प्रदान करने के लिए सत्तानवीसों के हाथ अभी से खुजा रहें हैं. क्योंकि ये तो 'मिनी' चुनाव है- असली दंगल तो अब आ रहा है.    

No comments:

Post a Comment

शोध

आपको क्या लगता है? शोध शुरू करके उसे लगातार झटपट पूरी कर देने पर नतीजे ज़्यादा प्रामाणिक आते हैं या फिर उसे रुक- रुक कर बरसों तक चलाने पर ही...

Lokpriy ...