एक राजा था. उसकी प्रजा में सौ आदमी थे. राजा के महल में अपार दौलत थी. खजाने में बेशकीमती हीरे-जवाहरात से लेकर असंख्य स्वर्ण-मुद्राएँ भरी थीं. प्रजा के पास कुछ न था. जो कुछ पैदावार खेतों में होती, राजा लगान में ले लेता. वक्त पड़ने पर लोग महल में आकर हाथ फैलाते और शासन से उधार लेते.यह उधार कभी चुकने में नहीं आता.
घूमते-घूमते एक दिन एक फ़कीर उधर आ निकला. उसकी भेंट राजा से भी हुई. फकीर राजा से बोला- आपके राज्य में गरीबी बहुत है. प्रजा के पास रोटी कपड़ा मकान की भी माकूल व्यवस्था नहीं है. यह सुन कर राजा क्रोध से तमतमा गया. बोला- क्या बात करते हो ? मेरे राज्य में हर आदमी करोड़पति है.फकीर मुंह बाये देखता रहा. राजा ने उसे समझाया- मेरे खजाने में सौ करोड़ से ज्यादा मुद्राएँ प्रति वर्ष आती हैं. राज्य की कुल जनसँख्या है- सौ. तो राज्य की प्रति व्यक्ति आय करोड़ से ज्यादा हुई या नहीं. फकीर राजा का लोहा मान गया और जोर-जोर से राजा की जय बोलने लगा.
कहानी ख़त्म होते ही फकीर चला गया और एक दिन भारत के प्रधान मंत्री के सपने में आया. प्रधान मंत्री ठीक से सो नहीं पा रहे थे, अपने देशवासियों की गरीबी की चिंता उन्हें हो रही थी.वैसे ऐसी चिंता उन्हें कभी होती नहीं थी पर ज़ल्दी ही चुनाव होने वाले थे, इसलिए उन्हें गरीबी की नहीं, बल्कि गरीबी के असर की चिंता थी. फकीर उनके सपने में था ही, फकीर ने न जाने कैसा मंत्र पढ़ा कि थोड़ी देर में सपने में प्रधान मंत्री की जय-जय कार होने लगी. देश के हर भिखारी के कटोरे में तरेपन-तरेपन हज़ार रूपये दिखने लगे.
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