बात तब की है जब ईश्वर स्वर्ग में बैठा दुनिया बना रहा था.दुनिया बन जाने के बाद जब उसे रंगने की बारी आई,अचानक ईश्वर ने कुछ कोलाहल सुना.आवाज़ रंगों के डब्बे से आ रही थी.सब रंग दुनिया में जाने को उतावले थे.मुस्करा कर ईश्वर ने डब्बा खोला,और तूलिका उठाई.
सबसे शांत दिखने वाले नीले रंग को सारा आकाश मिला.पीला रंग मिट्टी के हिस्से में आया.आँखों को लुभाने वाले हरे रंग ने पेड़-पौधों का राज पाया.
जब इंसान रंगने की बारी आई,अच्छी-खासी ज़द्दो-ज़हद हुई.ईश्वर को गुलाबी,गेहुआं,सांवला,भूरा,गंदुमी,गोरा,काला,बादामी सभी रंगों की सुननी पड़ी.फिर भी "रंग-भेद" से सब लड़ें नहीं,यह सोच कर सबमे लाल खून भरा गया.
सब रंग आपस में मिल कर रहें,यह सन्देश देने के लिए आकाश में इन्द्र-धनुष टांगा गया.इंसान की ख़ुशी के लिए सैंकड़ों रंग फूलों को मिले.
अच्छा अब बताओ,इंसान के दुःख में कौन सा रंग साथ देगा? ईश्वर ने पूछा.
सब चुप.कोई आगे न आया.सबको जैसे सांप सूंघ गया.
मजबूरन ईश्वर को "आंसू"बिना रंग के बनाने पड़े.रंगहीन.
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