जनता चाहती थी कि वे भ्रष्टाचार और घोटालों पर कुछ बोलें.मांग जायज़ थी. आखिर इतना सा हक़ तो जनता का भी बनता था कि एक के बाद एक घोटालों और भ्रष्टाचार-महोत्सवों के बाद उनके मुखारविंद से सुनें कि अपनी कुर्सी के नीचे चूहों की तरह दौड़ते घोटालों के ज़ाहिर होने के बाद वे कैसा महसूस करते हैं.
जनता की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्होंने आखिर प्रेस-कॉन्फ्रेंस रख ही ली. तमाम चैनलों को मानो महीनेभर का राशन एक साथ मिल गया. ताबड़तोड़ कवरेज़ के लिए लपके. जनता भी अपने-अपने घर में सांस रोक कर टीवी के सामने बैठ गयी. लाइव तो होना ही था.खखार कर उन्होंने कहना शुरू किया-
जब कुछ होता है, तो वह हो जाता है. जब हो जाता है, तब कुछ नहीं हो पाता.
एक युवा पत्रकार ने सवाल किया-सरकार जो करने के लिए कहती है, वो तो हो नहीं पाता, फिर ये सब कैसे हो जाता है?
वे बोले-बोलने से ध्यान भंग होता है, चुपचाप सब हो जाता है.
एक बुज़ुर्ग पत्रकार की आवाज़ आई-चुपचाप विकास क्यों नहीं होता?
-क्योंकि आप बोल रहे हैं, चुप रहेंगे तो आपका भी विकास हो जायेगा. वे बोले.
एक और आवाज़ आई-हमारे चुप रहने से क्या होगा,कोर्ट तो बोल रहे हैं.
-देखिये जब कोर्ट बोल रहे हैं, तब हमारा बोलना ठीक नहीं है. वैसे भी जब रामपुर में घोटाला हुआ, तब मैं लक्ष्मणपुर में था.जब सड़क पर घोटाला हुआ, मैं हवाई यात्रा में था.जब रूपये में घोटाला हुआ, तब मेरी जेब में डॉलर थे. जब मेरे पीए ने मुझे फोन पर बताना चाहा,मेरा फोन स्विच ऑफ था.
लेकिन आप लौटने के बाद तो कुछ कर सकते थे? पत्रकार झल्लाया.
-तब मेरा मूड-ऑफ था.
इसे पढ़कर हंसी रोके न रुकी, लाजवाब!
ReplyDeleteवाह - बहुत खूब :D
ReplyDeletehahahahaha, its hilarious mausaji :D
ReplyDeletetumhara photo kahan hai kushu?
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