Wednesday, September 7, 2011

बुद्धिजीवियों को वापरने की कला

बुद्धिजीवी किसी भी समाज की धरोहर होते हैं.किन्तु यदि उन पर ज्यादा ध्यान दिया जाय,तो वे अजीब बर्ताव करने लगते हैं.बेहतर यही है कि उन्हें सामान्य मान कर ही उनसे व्यवहार किया जाये,तभी वे समाजोपयोगी सिद्ध होते हैं.
एक राजा को महल के शयन-कक्ष में रात में कुछ मच्छरों ने परेशान किया.राजा सो न सका.अगली सुबह दरबार में उसने दरबारियों से पूछा-वो कौन सी चीज़ है जो सोने नहीं देती?
सब दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगे.
एक ने कहा- बीमारी.
दूसरा बोला- लालच.
तीसरे ने कहा- क्रोध.
चौथा बोला- सत्ता.
पांचवे ने कहा- दायित्व.
छठे की आवाज़ आई- भूख.
राजा संतुष्ट न हुआ.अंत में उसने यही सवाल महारानी के सामने रख दिया.
महारानी ने तपाक से कहा- "आप"
दरबार में सन्नाटा छा गया. राजा भी स्तब्ध रह गया.अपने क्रोध पर नियंत्रण करके राजा ने कहा- आप अपनी बात को सिद्ध कीजिये, वरना हमारे इस अपमान की सज़ा मिलेगी.
महारानी ने कहा- शयन-कक्ष में चंद मच्छर आ गए थे, वे आराम से आपके चेहरे पर सो रहे थे.पर आप उन्हें बार-बार उड़ा कर सोने नहीं दे रहे थे.
राजा निरुत्तर हो गया और दरबारी चकित.

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...