Saturday, September 3, 2011

सहज प्रेम की महज़ कहानी

उन दोनों का जन्म एक ही जगह पर हुआ था.उम्र भी लगभग बराबर ही थी.बचपन से ही रोज़ एक-दूसरे को देखते थे.व्यवधान केवल इतना था कि दोनों की जाति अलग-अलग थी,लेकिन इससे क्या?उनमे एक ही जगह जन्मने का अपनापन तो था.
एक-दूसरे के करीब आना संभव न था,विवशता थी,अपने घर से कहीं जाने की.फिर भी कभी धूप तो कभी हवा,एक-दूसरे के सन्देश पहुंचा ही देते थे.जब कभी वह उसे देखती,तो वह शरमा कर लाल हो जाता.जब वह उसे देखता,वह भी इस तरह झूमती,कि उसका गोरापन और भी निखर आता.दिन यूँही बीत रहे थे.
आखिर वह दिन भी आया जब दोनों को हमेशा-हमेशा के लिए एक-दूसरे से अलग होना था.दोनों के ही दिल में एक हूक सी उठी.न जाने कल क्या हो?कौन कहाँ जाये?
इस तरह उन्हें बिछड़ना पड़ा.वे अलग-अलग दिशा में ओझल हो गए.उन्हें तिनकों के नशेमन में जगह मिली.
कहते हैं कि प्यार सच्चा हो तो कायनात प्रेमियों को किसी तरह मिलाने में जुट ही जाती है.ऐसा ही हुआ.वे फिर मिले.एक दिन उनका विवाह हुआ.हल्दी-तेल चढ़ा.चुटकी भर लाली मांग में भरी गई.वे अग्नि की साक्षी में एक होकर रहे.जीवन ने उन्हें एक मंजिल  पर मिलाया.क्या आप जानते हैं ये किसकी कहानी है?

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...