बुज़ुर्ग कहा करते थे कि जो चलेगा,वह पहुंचेगा.पर हमारा देश भी विचित्र है,यहाँ रथ-यात्रा विपक्ष करता है,"पहुंची हुई"सरकार है.यहाँ भगवा वस्त्र तो विपक्ष पहनता है,किन्तु संन्यासी सरकार है.वीतरागी सरकार को किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता.
अब ऐसे में मीडिया भी क्या करे? बिना बात के तो वो भी कुछ नहीं कर सकता.तिल का ताड़ बना दे,राई का पर्वत बना दे,बात का बतंगड़ बना दे. पर बात तो हो?
प्यारे देश-वासियो,महंगाई कोई 'बात' नहीं है.मंहगाई कहीं नहीं है.वह न चक्षुओं से दर्शित है,न नासिका से सून्घनीय, न कर्णों से श्रवणीय,और न रिजर्व बैंक से कल्पनीय.
धन की कोई कमी नहीं है, जितने असली, उतने ही नकली नोट भी बाज़ार में हैं.सोना-चाँदी मुफ्त में है,कभी भी, कहीं भी,किसी के भी गले से खींचा जा सकता है.खाना-पानी तमाम सरकारी योजनाओं में बिखरा पड़ा है,साल में सौ दिन हाजरी लगाइए,और वर्ष-भर बैठ कर खाइए.कपड़ा तो पद-यात्राओं,जुलूसों,अनशनों, अगवानियों में मुफ्त बँट रहा है.अब वह ज़माना नहीं रहा कि किसी को तन ढकने के कपड़े की कमी पड़े,अब तो दिखाने तक को काले झंडे मुफ्त बँट रहे हैं.फिर महंगाई कहाँ है?
हाँ,पेट्रोल-डीज़ल पर ज़रूर हर पंद्रह-बीस दिन में थोड़े बहुत पैसे बढ़ते हैं.तो सरकार कब कहती है कि घूमो-फिरो.सरकार तो खुद सबको दूर-दराज़ से पकड़-पकड़ कर दिल्ली में ही ला रही है.यहाँ भी तमाम सुविधाएँ- मच्छर-दानी,ओढने-बिछाने की चादर,खाने की थाली,पानी का लोटा, सब सरकारी खर्च पर.
दक्षिण के राजा-रानी हों या उत्तर के अमर,सब पछता रहे हैं कि हमने करोड़ों क्यों कमाए? यहाँ तो सब मुफ्त में है.
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