Monday, September 19, 2011

३०० पोस्ट पूरी: ये तिहरा शतक "स्मार्ट इंडियन", डॉ.अजित गुप्ता और गिरिजेश कुमार के नाम

एक बार अंक आपस में लड़ पड़े. नौ ने कहा-इंसान नौ माह माँ के पेट में रह कर धरती पर आता है.दो बोला-सारे ज़रूरी अंग दो हैं, आँखें,कान,हाथ,पैर...पांच से चुप न रहा गया-संतुलित रहना है तो अंगुलियाँ पांच चाहिए.चार को चारों दिशाओं से समर्थन मिल रहा था.एक ने कहा-नंबर वन की बात ही निराली है.उधर छह सबको छठी का दूध याद दिलाने को ललकार रहा था.
तभी शून्य की आवाज़ आई-लड़ लो, तुममे से कोई नहीं जीतने वाला.मुझे अपने सर पर बैठाओ, फिर देखो तुम्हारी महिमा.सब चुप हो गए.
आज तीन ने एक नहीं,बल्कि दो-दो शून्य सर पर बैठा लिए हैं.अर्थात पूरे ३००
मुझे इस सफ़र में मिले तीन लोग याद आ रहे हैं.
डॉ.अजित गुप्ता जब राजस्थान साहित्य अकादमी की अध्यक्ष थीं,चाहते हुए भी उनसे कभी मिलना न हो पाया.जब अमेरिका से लौटा तो सोचा था,उनके सहयोग से एक पत्रिका निकालने की योजना पर काम करूंगा.पर आने के बाद कुछ और प्रस्तावों से जुड़ना पड़ा,और पत्रिका की बात किनारे रह गई.
ब्लॉग पर ही गिरिजेश कुमार से जुड़ा.मुझे अपने वे दिन याद आ गए, जब मैं भारतीय विद्या भवन,मुंबई में पत्रकारिता का छात्र था.पटना में पत्रकारिता के छात्र गिरिजेश की चीज़ों को तेज़ी से समझने की क्षमता ने मुझे हमेशा प्रभावित किया.इसका सुनहरा भविष्य भारतीय पत्रकारिता में सुनिश्चित है.
"स्मार्ट इंडियन" हमेशा मुझे अमेरिका में किसी भारतीय द्वीप की तरह दिखाई देते रहे.भारतीय मानसिकता की नर्सरी से जैसे कोई पौधा विश्व के श्रेष्ठतम देश के दालान में रोपा गया हो,जिसे हवा पानी धूप छाँव कहीं की भी मिले, फितरत अपनी मौलिक है.बच्चे भी मेरे आलेखों को उनकी टिप्पणी के आधार पर ही आंकने लगे हैं.'अंकल' का कमेन्ट आया है, अर्थात पोस्ट अच्छी है.
इन तीन नामों के उल्लेख का यह अर्थ न निकालें, कि मुझे अपने बाक़ी पढने वालों से कोई सरोकार नहीं है-राहुल,रवीन्द्र रवि,सुमित स्मार्टी,राजेश कुमारी जी,अंकित,विवेक जी,शुक्ल जी,मनोज जी,श्रीवास्तव जी,डॉ.राजेश,सुरेन्द्र सिंह जी,राकेश कुमार जी,ज़ील और पॉपकोर्न तो मेरे मन में हैं ही.

2 comments:

  1. प्रबोध जी, आपकी त्रिशतकीय पोस्ट पर हार्दिक बधाई! शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  2. dhanywad.aapki pahli pratikriya ne mere aaklan ko sahi siddh kar diya.

    ReplyDelete

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...