Wednesday, September 7, 2011

बम धमाके,निरीह लोगों का खून,कसूरवारों को जेड प्लस सुरक्षा,खुले आसमान तले जान हथेली पर लिए अवाम-ये कहाँ आ गए हम?

आइये दो मिनट का मौन रखलें.वक्त ने हमें इसी लायक छोड़ा है.हमारे सामने मजबूरियां ही मजबूरियां हैं.हम कर कुछ नहीं सकते.हमें वरदान या शाप मिला हुआ है कि हम केवल पांच बरस में एक बार ही हाथ-पाँव हिलाएंगे ,वह भी तब, जब कुर्सियों पे बैठने-बिठाने का मौसम आये.

2 comments:

  1. दुखद स्थिति है!

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  2. GOVIL JI
    sach kahane aur sach ke saath khare hone ke liye dhanywad

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

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