Friday, June 22, 2012

ओलिम्पिक रसातल के लिए भी

ओलिम्पिक दुनिया के सबसे बड़े खेल हैं, जिनमें भाग लेने वाले हर देश का हर खिलाड़ी "ऊंचाइयों" के लिए जंग लड़ता है, ताकि वह अपने देश का परचम बुलंदियों पर फहरा सके। लेकिन इधर कुछ समय से इसके उलट भी नज़ारा देखने को मिल रहा है। बहुत से लोग इस कुश्ती में भी ताल ठोक  रहे हैं, कि हमें "नीचा" या 'घटिया' घोषित करो। यदि इस सोच से किसी को शर्मिंदगी होती हो, तो वह शरमा  ले,क्योंकि ऐसा हो रहा है।
   कई जातियां खुले आम कहती घूम रही हैं, कि  हमें "पिछड़ा" मानो।
   कई विद्यार्थी कह रहे हैं कि  हमें बिना परीक्षा लिए पास करो, या फिर नक़ल करने दो।
   कई अफसर कह रहे हैं, कि  हमें खुले-आम घूस या रिश्वत खाने दो, टोका-टोकी मत करो।
   कई नेता कह रहे हैं कि  ...छोड़िये , उनकी सुनता कौन है?

कभी जैसी किस्मत राजकुमारियों की हुआ करती थी, वैसी अब राष्ट्रों की होने लगी है। राजकुमारियों के लिए स्वयंवर आयोजित किये जाते थे, कि वे सैंकड़ों आमंत्रित राजकुमारों में से अपनी पसंद का पति चुनें।
अब ऐसी सुविधा राष्ट्रों को भी मिलने लगी है, कि  वे समय आने पर अपना 'पति' अर्थात "राष्ट्रपति"चुनें।
कुछ भी हो, राजकुमारियों और देशों की किस्मत बिलकुल एक जैसी तो नहीं हो सकती। कुछ तो फर्क रहेगा ही। राजकुमारियां ऐसा पति चुनती थीं, जो बलशाली हो, जीवन में कुछ कर गुजरने का माद्दा रखता हो,उन्हें खुश रखे, आदि-आदि ...
राष्ट्र ऐसा पति खोजता है, जिसका बल बीत चुका  हो,जीवन में जो कुछ करना था, वह करके अब निठल्ला बैठना चाहता हो, और ..और ...राष्ट्र को खिजाता रहे। फिर भी दोनों की किस्मत में कुछ तो समानता भी है ही, राजकुमारियां इतना तो ध्यान रखती ही थीं, कि  वे जिसे भी चुनें वह उनकी अम्मी को पसंद हो।   
   

2 comments:

  1. वाह वाह क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है ...राजकुमारियां एसा वर चुनती थी जो उसकी अम्मी को पसंद ....सही कहा

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  2. rajkumariyon ko dhanywad, jinhone itne dinon baad aapse milaya. aabhar aapka bhi...

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