यदि किसी बच्चे को शुरू से ही गाना सिखाया जाये, तो वह युवा होते-होते अच्छा गायक बन जाता है। यदि किसी बच्चे को उसके शिशुपन से ही तैरना सिखाया जाये तो वह जवान होते-होते अच्छा तैराक बन जाता है। यही बात किसी भी हुनर के मामले में भी सही सिद्ध होती है। हाँ, कुछ अपवाद हो सकते हैं।
लेकिन न जाने क्यों, एक्टिंग के बारे में यह बात खरी नहीं उतरती, कि अच्छे बाल कलाकार बड़े होकर अच्छे अभिनेता भी बनें। कम से कम हिंदी फिल्मों का इतिहास तो यही कहता है। बहुत सारे ऐसे नामचीन बाल कलाकार हैं, जिन्होंने अपने बचपन में तो अपनी प्रतिभा और लोकप्रियता का लोहा मनवाया, लेकिन बड़े होने के बाद अपना वह जलवा कायम नहीं रख सके। लड़के बड़े होकर अपना वह आकर्षक डील-डौल नहीं निकाल सके, तो लड़कियों ने भी पैदायशी ऐक्ट्रेस वाली अदाकारी नहीं दिखाई।
एक बात पर ध्यान दें, ऐसे कई सफल कलाकार हुए हैं, जो बाल-अभिनेता या बाल-अभिनेत्री के तौर पर भी आये थे। लेकिन वे तब उतने सफल नहीं रहे, उन्होंने मात्र उपस्थिति दर्ज कराई। जो बचपन में बेहद सफल थे, उन्होंने बाद में कोई झंडे नहीं गाढ़े।
यदि ऐसा है, तो मुझे इसका कारण केवल यही लगता है, कि अभिनय भौतिक वस्तुओं की भाँति दिखाई देने वाली चीज़ नहीं है। किसी इत्र की तरह।
यदि किसी परफ्यूम की दूकान पर कोई शीशी बार-बार ग्राहक को दिखाई जाये, तो वह संभवतः नहीं बिकती। ग्राहक वही बोतल लेना पसंद करते हैं, जो बंद-पैक में भीतर से निकाली जाए। शायद दर्शक एक्टरों के बारे में भी यही सिद्धांत अपनाना पसंद करते हैं, उनका कलाकार अनछुआ, तरोताज़ा,नयापन लिए हुए हो।
लेकिन न जाने क्यों, एक्टिंग के बारे में यह बात खरी नहीं उतरती, कि अच्छे बाल कलाकार बड़े होकर अच्छे अभिनेता भी बनें। कम से कम हिंदी फिल्मों का इतिहास तो यही कहता है। बहुत सारे ऐसे नामचीन बाल कलाकार हैं, जिन्होंने अपने बचपन में तो अपनी प्रतिभा और लोकप्रियता का लोहा मनवाया, लेकिन बड़े होने के बाद अपना वह जलवा कायम नहीं रख सके। लड़के बड़े होकर अपना वह आकर्षक डील-डौल नहीं निकाल सके, तो लड़कियों ने भी पैदायशी ऐक्ट्रेस वाली अदाकारी नहीं दिखाई।
एक बात पर ध्यान दें, ऐसे कई सफल कलाकार हुए हैं, जो बाल-अभिनेता या बाल-अभिनेत्री के तौर पर भी आये थे। लेकिन वे तब उतने सफल नहीं रहे, उन्होंने मात्र उपस्थिति दर्ज कराई। जो बचपन में बेहद सफल थे, उन्होंने बाद में कोई झंडे नहीं गाढ़े।
यदि ऐसा है, तो मुझे इसका कारण केवल यही लगता है, कि अभिनय भौतिक वस्तुओं की भाँति दिखाई देने वाली चीज़ नहीं है। किसी इत्र की तरह।
यदि किसी परफ्यूम की दूकान पर कोई शीशी बार-बार ग्राहक को दिखाई जाये, तो वह संभवतः नहीं बिकती। ग्राहक वही बोतल लेना पसंद करते हैं, जो बंद-पैक में भीतर से निकाली जाए। शायद दर्शक एक्टरों के बारे में भी यही सिद्धांत अपनाना पसंद करते हैं, उनका कलाकार अनछुआ, तरोताज़ा,नयापन लिए हुए हो।
ek mitra ne meenakumari, shashikapoor, sridevi, neetu singh, urmila, sachin,saarika aadi ka udahran diya hai, ki yah sab baal kalaakaar bhi the. mujhe lagta hai ki jo baat main kahna chahta tha, shayad theek se kahi nahin jaa saki. main aur spasht karoonga...
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक प्रस्तुति , आभार.
Deletedhanywad, aapse bahut din baad milna hua.
ReplyDelete