कौन कहता है कि खेत
अब नहीं उगाते पौष्टिक अन्न
कि जिसे खाकर पैदा हो वास्तविक आदमी।
खेत तो अब भी उगाते हैं अन्न
हाँ, अगर वह पौष्टिक न निकले
तो ज़रूरी है तहकीकात
उन इल्लियों व कीटों की नहीं
जो पनप जाते हैं खेतों की भुरभुरी मिट्टी में
बल्कि उनकी,
जो पनप जाते हैं
चमचमाते शहरों के जगमगाते बंगलों में !
तहकीकात उनकी ज़रूरी नहीं
जो हल-बैल या ट्रेक्टर लेकर
आंधी-पानी-धूप में घूमते हैं खुले आसमान तले
तहकीकात उनकी करो जो
कुर्सी के खेत में वोटों की खाद देकर
मौन रख लेते हैं और
खुश होते हैं दिन गिन-गिन कर
अपनी सल्तनतों के।
अब नहीं उगाते पौष्टिक अन्न
कि जिसे खाकर पैदा हो वास्तविक आदमी।
खेत तो अब भी उगाते हैं अन्न
हाँ, अगर वह पौष्टिक न निकले
तो ज़रूरी है तहकीकात
उन इल्लियों व कीटों की नहीं
जो पनप जाते हैं खेतों की भुरभुरी मिट्टी में
बल्कि उनकी,
जो पनप जाते हैं
चमचमाते शहरों के जगमगाते बंगलों में !
तहकीकात उनकी ज़रूरी नहीं
जो हल-बैल या ट्रेक्टर लेकर
आंधी-पानी-धूप में घूमते हैं खुले आसमान तले
तहकीकात उनकी करो जो
कुर्सी के खेत में वोटों की खाद देकर
मौन रख लेते हैं और
खुश होते हैं दिन गिन-गिन कर
अपनी सल्तनतों के।
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