Wednesday, June 6, 2012

उगते नहीं उजाले[बारह]

     सामने से झुमरू बैल अपनी गाड़ी खींचता चला आ रहा था। लाजो ऐसा मौका भला कैसे छोड़ती ? झट सवार होली। झुमरू अपनी धुन में चला जा रहा था। हिचकोले खाती लाजो भी चल पड़ी। लाजो की आँखें नींद से बोझिल हो रही थीं। सहसा लाजो ने एक मधुर सी स्वर-लहरी सुनी। कोई गा रहा था-
"कौन भला गाड़ी पर चढ़कर, चला ठुमकता अपने गाँव
किसने सबका भला किया है, क्या है बोलो उसका नाम?"
     लाजो का गला जामुन खाने से ज़रा बैठा हुआ था, फिर भी सपनों के लोक से निकल कर नूरी जैसे ही स्वर में गा उठी-
"निकली वो सेवा करने को, सेवा करना उसका काम
सारे  उसको  लाजो  कहते, लाजवंती  उसका  नाम "
     लाजो को झूम-झूम कर गाते देख कर  झुमरू ने गर्दन घुमा कर देखा।  झुमरू बोला- वाह  लाजो बहन, तुम तो मेरे कोचवान के संग सुर मिला कर बड़ा सुरीला गा रही हो?
     कोचवान, कौन कोचवान? यहाँ तो कोई नहीं दिखाई देता।
     अरे, दिखाई कैसे देगा? मेरे कान में जो घुसा बैठा है। झुमरू के यह कहते ही उसके कान से कूद कर दिलावर झींगुर बाहर आया, और बुलंद आवाज़ में बोला- चलो बुआ जी, गाना बंद करो, अब घर आ गया।
     दिलावर को देखते ही लाजो ने सर पीट लिया। आज फिर उसकी तपस्या पर पानी फिर गया था। दिलावर झुमरू से कह रहा था, चाचा, लाजो बुआ से पैसा मत लेना। देखो, कैसा मीठा गीत सुनाया है। कह कर दिलावर जोर-जोर से हंसने लगा। लाजो नीची गर्दन करके चुपचाप घर के भीतर चली गई। [जारी]

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