Tuesday, June 5, 2012

उगते नहीं उजाले [ग्यारह]

     लाजो विचारमग्न बैठी ही थी कि  तभी मटकती हुई लोलो गिलहरी वहां आ गई। लाजो ने अपनी चिंता उसे बताई। लोलो इठलाती हुई बोली, बुआ, मैं तो हर हफ्ते अपनी दुम  को ट्रिम कराने वहां जाती हूँ।
     -क्या कहा? तू दुम  कटा के आती है।
     -ओहो, कटा कर नहीं, ट्रिम कराके! बारीक काट-छांट से सुन्दर बनाकर। लोलो ने शान से कहा।
     लाजो ईर्ष्या से भड़क उठी। यह पिद्दी सी गिलहरी वहां हमेशा जाती है? और लाजो को पता तक नहीं। लाजो को बड़ी खीझ हुई। खिसियाकर बोली- तो कौन सी बड़ी बात है, मुझे तो टाइम ही नहीं मिलता, नहीं तो मैं भी जाऊं।
     लाजो ने मन ही मन यह ठान लिया कि  यही ठीक रहेगा। वह अपनी दुम  की शेप सुधरवाने ब्यूटी-पार्लर में  जाएगी, और मौका ताक  कर वहां से  नूरी के लिए तरह-तरह के सौन्दर्य-प्रसाधन उठा लाएगी। उठाई-गीरी  में तो दूर-दूर तक कोई उसका सानी न था।
     उसने लोलो से कुछ रूपये उधार ले लिए और चल पड़ी।
     ब्यूटी-पार्लर को भीतर से देख कर लाजो दंग  रह गई। उसने शीशे के सामने तरह-तरह के पोज़ बना कर खुद को निहारा। वहां पड़ी बिंदी उठा कर अपने माथे पर लगा कर देखी। फिर मौका देख कर झट से अपने मुंह पर लाली भी लगा ली।
     लाजो लाज से दोहरी हो गई।
     थोड़ी ही देर में उसकी दुम  भी क़तर दी गई। वहां ऐसा पाउडर था, जिससे काला  रंग गोरा हो जाये। लाजो ने खूब सारा पाउडर नूरी के लिए छिपा कर रख लिया। लाजो जब बाहर निकली तो  पहचानने में भी नहीं आ रही थी। सब लेकर वह कोयल नूरी के यहाँ पहुंची।
     लाजो से इतने उपहार पा कर नूरी की आँखों में आंसू आ गए। वह ख़ुशी के आंसू थे। नूरी ने बुआ लाजो को जम कर जामुनों की दावत दी। जितनी मीठी नूरी की आवाज़, उतने ही मीठे वे रसीले जामुन। लाजो को ऐसा लगा कि  अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है।
     तीसरे पहर काफी सारे रसीले आम  खा कर लाजो ने नूरी से विदा ली।
      पेट इतना भर चुका  था, कि  लाजो को चलना दूभर हो रहा था। जैसे-तैसे आगे बढ़ी जा रही थी। लाजो ने सोचा, काश, कोई सवारी मिल जाये, तो कितना आनंद आ जाये।
     बिल्ली के भाग से छींका टूटा। [जारी]   

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