Tuesday, June 12, 2012

उगते नहीं उजाले [अठारह ]

     छन्नू गिरगिट तो यह भी नहीं जानता था कि  रंग लगा कर लाजो लोमड़ी ने किस तरह उसकी भलाई की है, इसलिए लाजो ने ज्यादा रुकना मुनासिब नहीं समझा। छन्नू ने लाजो को खूब मीठे-मीठे बेर खिलाये।
     लाजो मस्ती में झूमती घर वापस जा रही थी, कि  रास्ते में खूब सारे मोहल्ले वाले नाचते-गाते मिल गए। लाजो ने भी जम के ठुमके लगाए। ताली बजा-बजा कर चुहिया अनुसुइया गीत गा रही थी। अनु की आवाज़ बड़ी मीठी थी, सब उसका साथ दे रहे थे-

"रंग-रंगीली  होली  आई,  उड़ें  रंग   के   रंग   तमाम
किसने किसके रंग लगाए, पक्के, बोलो उसका नाम!"

     लाजो नाचती-नाचती हांफ गई थी, फिर भी ऊंचे स्वर में गा उठी-

"रंग बदलने वाले का जो, कर के आई पक्का काम
सारे  उसको लाजो कहते, लाजवंती  उसका  नाम !"

     लाजो का गीत सुनकर सब ख़ुशी से नाचने लगे। भीड़ से निकल कर दिलावर झींगुर  सामने आया, और लाजो के गुलाल लगाता हुआ बोला- होली मुबारक बुआ ! वाह, क्या गीत गाया।
     दिलावर को देखते ही लाजो जैसे आसमान से गिरी। नाचते-नाचते पाँव  के नीचे से ज़मीन ही निकल गई। होली का सारा मज़ा किरकिरा हो गया। लाजो धप्प से ज़मीन पर ही बैठ गई। दिलावर उछल कर सामने आया, और बोला- अरे बुआ जी, तुम तो नाच-गा कर इतना थक गईं। चलो, मेरे घर चलो, शकरकंद के छिलके के चिप्स खिलाऊंगा। ख़ास तुम्हारे लिए बनाए हैं मेरी घरवाली ने। कहती थी, बुआ जी को ज़रूर लाना दावत पर। [जारी ] 

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