निक वालेंदा ने जो कर दिखाया, वह उत्कट जिजीविषा के बिना संभव नहीं था। वे जब नायग्रा फाल्स के सीने को चीरते हुए पैदल अमेरिका से कनाडा जा रहे थे, तो ज़मीन पर डेढ़ लाख और मीडिया के माध्यम से कई करोड़ लोगों के अलावा हजारों लोग ऐसे भी थे, जो आसमान से, अलग-अलग नक्षत्रों से उन्हें देख रहे थे। ये वे लोग थे, जो दुनिया से जीकर जा चुके थे, लेकिन अब भी दुनिया की बातों में दिलचस्पी रखते थे, क्योंकि दुनिया ने इनके जीते जी इनके सपने पूरे कर पाने में बहुत देर कर दी।
इन्हीं लोगों में कारी भी थे। लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि हर तरफ गौर से देखने के बावजूद "किन्जान" कहीं नहीं दिखे। आसमान पर, या और किसी भी नक्षत्र पर नहीं। इसी से मुझे लगता है, हो न हो, पुनर्जन्म की बात में कुछ तो है। "निक" ही किन्जान हैं। आखिर उन्होंने "सूखी धूप में भीगा रजतपट" पार कर ही लिया।
अब कम से कम किन्जान की रूह तो किसी सैलानी को परेशान नहीं करेगी। किन्जान का तर्पण कर देने के लिए निक को करोड़ों बधाइयाँ ...
"समय तू धीरे-धीरे चल, चाहे जल्दी-जल्दी चल
जो सपना देखेगा इंसान, हकीकत होगा ही वो कल"
इन्हीं लोगों में कारी भी थे। लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि हर तरफ गौर से देखने के बावजूद "किन्जान" कहीं नहीं दिखे। आसमान पर, या और किसी भी नक्षत्र पर नहीं। इसी से मुझे लगता है, हो न हो, पुनर्जन्म की बात में कुछ तो है। "निक" ही किन्जान हैं। आखिर उन्होंने "सूखी धूप में भीगा रजतपट" पार कर ही लिया।
अब कम से कम किन्जान की रूह तो किसी सैलानी को परेशान नहीं करेगी। किन्जान का तर्पण कर देने के लिए निक को करोड़ों बधाइयाँ ...
"समय तू धीरे-धीरे चल, चाहे जल्दी-जल्दी चल
जो सपना देखेगा इंसान, हकीकत होगा ही वो कल"
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