अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि अमेरिका पर क़र्ज़ का बोझ बेतहाशा बढ़ गया है.आइये, एक आम आदमी की तरह इस बात का मतलब जानें, और यह भी जानने की कोशिश करें कि इस वक्तव्य पर कौन सा देश क्या सोच रहा होगा.
मूल रूप से क़र्ज़ को लेकर हमारी अवधारणा हमारे वेद-वाक्यों व लोकोक्तियों में दर्ज है. सर्वाधिक लोकप्रिय कहावतें हैं- आज नकद, कल उधार. ऋण लेकर घी पीना[वैसे यह कहावत ऋण पर कुछ न कह कर घी की महिमा बखानती है],उधार प्रेम की कैंची है.चादर देख कर पैर पसारना. यह सभी उक्तियाँ क़र्ज़ विरोधी हैं, और आज तेज़ी से बदलते समय में अप्रासंगिक होती जा रही हैं.इसके उलट अमेरिकी व पश्चिम की सोच है- खर्च करना सीखो, तो कमाना भी आएगा. भविष्य तुम्हारा है, इस से थोड़ा सा लेकर अपना वर्तमान सुधार लो.
इस तरह क़र्ज़ की चिंता वही कर सकता है जो इसे वास्तविक 'चिंता' मान कर इसे ईमानदारी से चुकाने की नीयत रखता हो. ओबामा महोदय का आशय यही है कि "भविष्य" से जो ले लिया है उसे लौटाने के लिए "वर्तमान" का परिश्रम और बढ़ाओ.
यह ओबामा का कथन है. इसे दुनिया-भर में ध्यान से सुना जायेगा. लेकिन किसी के कुछ भी सोचने पर किसी की कोई पाबंदी नहीं है. आइये देखें- कौन क्या सोचने लगा होगा-
किसी को नीचा दिखा कर कोई सुख से नहीं बैठ सकता- रूस.
बाज़ारों पर हमारी मेहनत का कब्ज़ा है,किसी के 'आलस्य' का नहीं- चीन.
हमें केवल कुदरत हरा सकती है, और कोई नहीं, हम तो क़र्ज़ भी बीज के लिए लेते हैं,ब्रेड के लिए नहीं- जापान.
चलो उनका पैसा तो दूसरे भी नहीं लौटा रहे, हमारी क्या बिसात?-पाकिस्तान.
चलो उनका पैसा तो दूसरे भी नहीं लौटा रहे, हमारी क्या बिसात?-पाकिस्तान.
'रनर-अप' से "विनर" बनने के दिन नज़दीक आये-जर्मनी.
सूरज न्याय-प्रिय है, सबके लिए डूबता है- इंग्लैण्ड.
अपने खेत में तो अन्न भी है, जल भी और ज़मीन के जेवरात भी, क़र्ज़ लेने और देने वाले जाने- साउथ अफ्रीका.
अब यूनान के बाद हम अकेले नहीं होंगे - फ्रांस
पडौसी दुखी है, चैन से नहीं बैठा जा सकता- ब्राजील.
अभी तो दूर बज रहा है ढोल, नज़दीक आएगा तो देखा जायेगा-आस्ट्रेलिया.
क्या किया जाये, कि संसार की निगाहें इसी तरफ उठी रहें-कनाडा.
आया ऊँट पहाड़ के नीचे-भारत.