Tuesday, June 3, 2014

ये मत पढ़िए, न तो आपको समझ में आएगा, और न ही अच्छा लगेगा

फिल्मों में, टीवी पर, अख़बारों में शराब के विज्ञापनों पर पाबन्दी है।  जब कोई भी हीरो, शुक्र है कि हीरोइनें बहुत कम,परदे पर शराब पीते दिखाए जाते हैं तो वहां लिखा हुआ आता है कि यह हानिकारक है।  किन्तु शराब की दुकानों पर गहमा-गहमी और भीड़ बदस्तूर जारी है।  ऐसा ही तम्बाकू उत्पादों, सिगरेट बीड़ी आदि के साथ भी है।  ये कितना सुन्दर और स्वस्थ तरीका है किसी समस्या के हल का? इसमें किसी की हानि नहीं है- न पीने वाले की, और न बेचने वाले की।  प्रशासन और शासन भी अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर लेते हैं।
शायद कुछ दिन बाद मीडिया में दुष्कर्म के समाचारों के साथ भी यह लिखना अनिवार्य कर दिया जाएगा कि "इसे पढ़ना उचित नहीं है, यह सम्मान-विरोधी है।"
रोज के समाचारों में जब देश-विदेश में स्मैक, चरस, अफीम, गांजा,हेरोइन, ब्राउनशुगर आदि पकड़े जाने, इनकी तस्करी होने के चर्चे आते हैं, तो युवा लोग और विद्यार्थी सोचते हैं कि करोड़ों रूपये का ये व्यापार सरकारें खुद क्यों नहीं करतीं?
नशे के आदी हो चुके छात्र कहते हैं कि नशा किसमें नहीं है? क्या किताबों में नहीं? पैसे में नहीं ? सत्ता में नहीं ?संबंधों में नहीं ?शोहरत में नहीं ?
मैं जानता हूँ कि आपको अच्छा नहीं लग रहा।  लेकिन मैं और कर ही क्या सकता हूँ,आपको चेताने के सिवा, मैंने तो पहले ही कह दिया था कि मत पढ़िए। क्योंकि लिखना शुरू करते समय खुद मुझे भी पता नहीं था कि मैं क्या कहने वाला हूँ।   
लेकिन गलती आपकी भी तो नहीं, आपको ये पढ़ना ही था, क्योंकि ये मेरी १०००वीं पोस्ट है।          

2 comments:

  1. प्रशासनिक व्यवस्था सुधारने के बजाय राजनेता जब शान से एक हेल्पलाइन शुरू करने की घोषणा कराते हैं तो दिमाग में यही बात आती है कि अगर हर छोटा-बड़ा बच्चा-बच्ची हर समय अपने साथ एक चलता हुआ फोन, फूल सिग्नल के साथ रख भी ले और हेल्पलाइन उसके संकटकाल में सदा खाली ही हो तो भी, कॉल लेने के बाद तो उसी लापता प्रशासन की ढूंढ पड़ेगी जो हेल्पलाइन से पहले भी नहीं है और बाद में भी नहीं बनाया जा रहा ... अफसोस, आपकी बात न तो वर्तमान प्रशासकों को समझ आएगी और न अच्छी लगेगी।

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