Tuesday, July 1, 2014

सुश्री ऋतु शर्मा, सुश्री चांदनी, डॉ जगदीश कौर वाडिया, डॉ रुख़साना सिद्दीक़ी,डॉ देवेन चन्द्र दास सुदामा और श्री खीमन मुलानी के प्रति आभार

 ये आधा दर्जन नाम मैंने इनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए चुने हैं।  मैं इनके प्रति आपकी और अपनी ओर से आभार दर्ज़ कर रहा हूँ क्योंकि इन्होंने मेरे उपन्यास "जल तू जलाल तू" को अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू , असमिया और सिंधी भाषा में उपलब्ध कराया है।
हम भारत की राजभाषा हिंदी की अनदेखी भी नहीं कर सकते, मगर इसके लिए किसी को धन्यवाद भी नहीं देंगे, क्योंकि हिंदी में तो ये मूल रूप से था ही। मैंने जो लिख दिया था। अब स्वयं के प्रति कैसा आभार !           

1 comment:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...