ये आधा दर्जन नाम मैंने इनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए चुने हैं। मैं इनके प्रति आपकी और अपनी ओर से आभार दर्ज़ कर रहा हूँ क्योंकि इन्होंने मेरे उपन्यास "जल तू जलाल तू" को अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू , असमिया और सिंधी भाषा में उपलब्ध कराया है।
हम भारत की राजभाषा हिंदी की अनदेखी भी नहीं कर सकते, मगर इसके लिए किसी को धन्यवाद भी नहीं देंगे, क्योंकि हिंदी में तो ये मूल रूप से था ही। मैंने जो लिख दिया था। अब स्वयं के प्रति कैसा आभार !
हम भारत की राजभाषा हिंदी की अनदेखी भी नहीं कर सकते, मगर इसके लिए किसी को धन्यवाद भी नहीं देंगे, क्योंकि हिंदी में तो ये मूल रूप से था ही। मैंने जो लिख दिया था। अब स्वयं के प्रति कैसा आभार !
Aapka bahut aabhaar!
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