Wednesday, July 23, 2014

दिल,दौलत,दुनिया

कल 'ज़ी क्लासिक' चैनल ने पहली बार "दिल दौलत दुनिया" फिल्म दिखाई।
यह अभिनेत्री साधना की आख़िरी रिलीज़ फिल्म थी।  इसी फिल्म के दौरान उनकी आँखों में हुई तकलीफ बहुत बढ़ गई थी, और उन्हें लगातार शूटिंग छोड़-छोड़ कर इलाज के लिए विदेश जाना पड़ा था।  फिल्म जैसे-तैसे काट-जोड़ कर प्रदर्शित की गई।
शायद यही कारण था कि फिल्म के क्रेडिट्स में निर्माता-निर्देशक ने अपना नाम नहीं दिया। आगा,ओमप्रकाश,टुनटुन,जगदीप जैसे हास्य कलाकारों के होते हुए भी अशोक कुमार,हेलन,बेला बोस और सुलोचना के हिस्से भी हास्य भूमिकाएं आईं।
फिल्म को प्रदर्शित कर दिए जाने के पीछे दो महत्वपूर्ण कारण थे- इसके साथ उन राजेश खन्ना का नाम जुड़ा था,जो उन दिनों आराधना,दो रास्ते, दुश्मन,आनंद जैसी फ़िल्में दे चुकने के बाद सुपरस्टार थे, और पहली बार पिछले दशक की लोकप्रिय स्टार साधना के साथ काम कर रहे थे। दूसरे,स्वास्थ्य कारणों से फ़िल्मी-दुनिया छोड़ने को मजबूर हुई साधना की अनेक अधूरी पड़ी फिल्मों में से अकेली पूरी की जा सकी फिल्म यही थी।
तमाम हास्य भूमिकाओं के बीच केवल साधना और राजेश खन्ना की "समाजवाद" के समर्थन में गंभीर भूमिकाएं थीं।
उल्लेखनीय है कि साठ-सत्तर के दशक में साधना के - वो कौन थी, परख, दूल्हा-दुल्हन,लव इन शिमला,राजकुमार,एक मुसाफिर एक हसीना,हम दोनों,वक़्त,आरज़ू,मेरे मेहबूब,बद्तमीज़,मेरा साया,एक फूल दो माली, अनीता,अमानत,इश्क पर ज़ोर नहीं,इंतक़ाम,गीता मेरा नाम, गबन,सच्चाई,महफ़िल,आप आये बहार आई  जैसी अनेकों फिल्में करने के बावजूद साधना के साथ दिलीप कुमार ने कोई फिल्म नहीं की। कहते हैं कि साधना की छवि एक रहस्यमयी महिला की थी और दिलीप कुमार सायरा बानो जैसी खुली शख़्सियत के अभ्यस्त थे, उन्हें साधना का व्यक्तित्व मधुबाला की याद दिलाता था,जिसे वे भूलना चाहते थे।           

2 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...