फ़ैशन के लिए ही कहा था न जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने-"फ़ैशन इतनी बदसूरत बला है कि इसे रोज़ बदलना पड़ता है"
लेकिन अब ये 'बदसूरत बला' भी जम कर बैठ गई है। किसी भी चीज़ का फ़ैशन कभी जाता ही नहीँ।
यदि आपको पुरानी चीज़ें जमा करने का शौक हो, और अपने इस शौक के चलते आप बरसोँ पुरानी सहेज कर रखी गई कोई ड्रेस आज पहन कर किसी पार्टी में चले जाएँ तो भी आप अजीब नहीं लगेंगे।
इसके बहुत सारे कारण हैं-
१. सैंकड़ों टीवी चैनलों पर दिन-रात चलते नये-पुराने कार्यक्रमों की बदौलत हर दौर का फैशन अब सदाबहार हो गया है, और लोग इसे हमेशा स्वीकार कर लेते हैं।
२. "ज़माने" की अवधारणा अब पूरी तरह मिट गई है। अब किसी का ज़माना न तो जाता है, और न ही कभी पुराना पड़ता है। "रंगभेद" मिटाने के लिए कार्य करने वाले भी हमेशा सक्रिय रहते हैं, और आपको "इंस्टेन्ट व्हाइटनिंग" देने वाले भी।
३. लगातार बढ़ती मंहगाई लोगों को हमेशा 'नए' के पीछे भागने भी नहीं देती।
लेकिन आप सोच रहे होंगे कि फ़िर 'फैशन' बेचारा कैसे हो गया? ये तो शान से जमकर बैठने वाला और भी ताक़तवर खेल हो गया !
'बेचारा' इसलिए, क्योंकि बेचारे की हमेशा नये बने रहने की ललक तो थम गई न !
लेकिन अब ये 'बदसूरत बला' भी जम कर बैठ गई है। किसी भी चीज़ का फ़ैशन कभी जाता ही नहीँ।
यदि आपको पुरानी चीज़ें जमा करने का शौक हो, और अपने इस शौक के चलते आप बरसोँ पुरानी सहेज कर रखी गई कोई ड्रेस आज पहन कर किसी पार्टी में चले जाएँ तो भी आप अजीब नहीं लगेंगे।
इसके बहुत सारे कारण हैं-
१. सैंकड़ों टीवी चैनलों पर दिन-रात चलते नये-पुराने कार्यक्रमों की बदौलत हर दौर का फैशन अब सदाबहार हो गया है, और लोग इसे हमेशा स्वीकार कर लेते हैं।
२. "ज़माने" की अवधारणा अब पूरी तरह मिट गई है। अब किसी का ज़माना न तो जाता है, और न ही कभी पुराना पड़ता है। "रंगभेद" मिटाने के लिए कार्य करने वाले भी हमेशा सक्रिय रहते हैं, और आपको "इंस्टेन्ट व्हाइटनिंग" देने वाले भी।
३. लगातार बढ़ती मंहगाई लोगों को हमेशा 'नए' के पीछे भागने भी नहीं देती।
लेकिन आप सोच रहे होंगे कि फ़िर 'फैशन' बेचारा कैसे हो गया? ये तो शान से जमकर बैठने वाला और भी ताक़तवर खेल हो गया !
'बेचारा' इसलिए, क्योंकि बेचारे की हमेशा नये बने रहने की ललक तो थम गई न !
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