-"सर, मुझे याद था कि आज गुरु पूर्णिमा है, मैं आपके लिए उपहार लेकर ही आया हूँ।"
वे प्रसन्न हो गए-"वाह, दिखाओ तो क्या लाये हो?"
लड़के ने कंधे पर टंगे झोले से एक इलेक्ट्रिक प्रेस निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा-"आपने मुझे आत्मनिर्भर होने का पाठ पढ़ाया, मैंने सोचा, क्यों न आपको आत्मनिर्भर बना दूँ, अब आप अपने कपड़े स्वयं इस्त्री कर सकेंगे।"
वे भीतर से तिलमिला गए, पर बाहर से सहज होते हुए बोले-"ये तो महँगी होगी, तुमने इतना नुकसान क्यों उठाया?"
लड़का संजीदगी से बोला-"बिलकुल नहीं सर, आपने मुझे गणित और हिसाब भी तो सिखाया है, ये ठीक उतने में ही आई है, जितने पैसे मैं आपको इस महीने फीस में देने वाला था।"
-"ओह, हिसाब बराबर? पर तुमने साल भर तक मेरी सेवा की, और तुम्हें कुछ न मिला!" वे बोले।
लड़के ने विनम्रता से कहा-"क्यों नहीं सर, साल भर तक प्रेस के कपड़ों का बिल नौ सौ पचास रूपये हुआ, जो आपने अब तक नहीं दिया, एक दिन आपकी शर्ट की जेब से प्रेस करते हुए मुझे हज़ार का नोट मिला, जो मैंने आपको नहीं दिया,हिसाब बराबर!"
वे अब गुस्से पर काबू न रख सके-"हिसाब के बच्चे, पचास रूपये तो लौटा!"
लड़का शांति से बोला-"आपने ही तो मुझे सिखाया था कि जो कुछ ईमानदारी से चाहो, वह अवश्य मिलता है, तो मुझे मेरी बढ़ी हुई दर से पैसे मिल गए।"
-"नालायक, तो उपहार का क्या हुआ?"वे उखड़ गए।
-"आपने मुझे इतना कुछ सिखाया,तो कुछ मैंने भी तो आपको सिखाया, हिसाब बराबर!"लड़का बोला।
-"तूने मुझे क्या सिखाया?" वे आपे से बाहर हो गए।
-"नया साल केवल दिवाली से नहीं, बल्कि 'शिक्षा' से आता है, और क्रोध मनुष्य का दुश्मन है।" कह कर लड़का अब निकलने की तैयारी कर रहा था। [समाप्त]
वे प्रसन्न हो गए-"वाह, दिखाओ तो क्या लाये हो?"
लड़के ने कंधे पर टंगे झोले से एक इलेक्ट्रिक प्रेस निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा-"आपने मुझे आत्मनिर्भर होने का पाठ पढ़ाया, मैंने सोचा, क्यों न आपको आत्मनिर्भर बना दूँ, अब आप अपने कपड़े स्वयं इस्त्री कर सकेंगे।"
वे भीतर से तिलमिला गए, पर बाहर से सहज होते हुए बोले-"ये तो महँगी होगी, तुमने इतना नुकसान क्यों उठाया?"
लड़का संजीदगी से बोला-"बिलकुल नहीं सर, आपने मुझे गणित और हिसाब भी तो सिखाया है, ये ठीक उतने में ही आई है, जितने पैसे मैं आपको इस महीने फीस में देने वाला था।"
-"ओह, हिसाब बराबर? पर तुमने साल भर तक मेरी सेवा की, और तुम्हें कुछ न मिला!" वे बोले।
लड़के ने विनम्रता से कहा-"क्यों नहीं सर, साल भर तक प्रेस के कपड़ों का बिल नौ सौ पचास रूपये हुआ, जो आपने अब तक नहीं दिया, एक दिन आपकी शर्ट की जेब से प्रेस करते हुए मुझे हज़ार का नोट मिला, जो मैंने आपको नहीं दिया,हिसाब बराबर!"
वे अब गुस्से पर काबू न रख सके-"हिसाब के बच्चे, पचास रूपये तो लौटा!"
लड़का शांति से बोला-"आपने ही तो मुझे सिखाया था कि जो कुछ ईमानदारी से चाहो, वह अवश्य मिलता है, तो मुझे मेरी बढ़ी हुई दर से पैसे मिल गए।"
-"नालायक, तो उपहार का क्या हुआ?"वे उखड़ गए।
-"आपने मुझे इतना कुछ सिखाया,तो कुछ मैंने भी तो आपको सिखाया, हिसाब बराबर!"लड़का बोला।
-"तूने मुझे क्या सिखाया?" वे आपे से बाहर हो गए।
-"नया साल केवल दिवाली से नहीं, बल्कि 'शिक्षा' से आता है, और क्रोध मनुष्य का दुश्मन है।" कह कर लड़का अब निकलने की तैयारी कर रहा था। [समाप्त]
वाह , गुरु गुड रह गए चेले शक्कर हो गए
ReplyDeleteDhanyawad! Yahi hota hai, chele sakaratmak baaten der se seekhte hain, par nakaratmak jaldi!
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