किसी के व्यक्तित्व पर वे बातें खासा असर डालती हैं जो उसकी "टीन एज"में घटी हों। मेरी टीन एज जुलाई १९६५ से जून १९७३ तक रही।
यदि मैं इस दौर की बात करुँ तो भारतीय फिल्मों, और उनमें हिंदी की मुख्यधारा की फिल्मों का असर मुझ पर भी उसी तरह पड़ा जैसे किसी भी युवा पर पड़ता है।
इस समय 'नागिन' से शुरू हुआ वैजयंतीमाला का सफर 'संगम'तक आते-आते शिखर पर था। पर इसी समय 'मेरे मेहबूब' के देशव्यापी खुमार के बाद "वक़्त"ने साधना की ज़बरदस्त उपस्थिति दर्ज कराई थी। साधना कट बाल और चूड़ीदार की लोकप्रियता के साथ-साथ राजकुमार, आरज़ू,मेरा साया,एक फूल दो माली आदि फिल्मों ने अगले कुछ साल साधना के नाम लिख दिए। मशहूर पत्रिका "माधुरी"ने जब देश भर के पाठकों की राय पर 'फिल्मजगत के नवरत्न' चुने तो राजेश खन्ना और जीतेन्द्र के बाद तीसरा नाम साधना का था और अन्य समकालीन नायिकाओं का दूर-दूर तक कोई ज़िक्र नहीं था।
इस समय वैजयंतीमाला प्रिंस,दुनिया,संघर्ष,आम्रपाली,गँवार आदि के साथ उतार पर नज़र आने लगीं। पालकी,धरती जैसी फिल्मों ने गाइड के बावजूद वहीदा का बाजार ठंडा रखा। सरस्वती चन्द्र,लाटसाहब,सौदागर ने नूतन के बदलते रुझान को अंकित किया।
आशा पारेख, शर्मिला टैगोर,बबिता दौर के उभरते नाम थे।
१९६९ में इंतकाम फिल्म के एक गाने को जब बिनाका गीत माला ने टॉप पर रक्खा,तो इससे तीन बातों की अनुगूँज सुनाई दी। गाना था-"कैसे रहूँ चुप ,कि मैंने पी ही क्या है?"
-बदले की भावना पर एंग्री यंगमैन अमिताभ बाद में जो "युग" लाये उसकी नायिका-प्रधान आधारशिला इसी समय रखी गयी।
-कैबरे,नशे और खलनायिका के लिए आशा भोंसले की सटीक आवाज़ को पहली बाऱ चुनौती लता मंगेशकर ने इसी गीत से दी.
-जिस हेलन के डाँस को बाकी हीरोइनें कुर्सी पर बैठ कर सहती थीँ,वह इस गीत में एक ओर खड़ी रही, और डाँस चलता रहा।
इसके बाद तो हेमामालिनी,मुमताज़,जया भादुड़ी,शर्मिला, रेखा और ज़ीनत अमान ने इतिहास बदल दिया।
यदि मैं इस दौर की बात करुँ तो भारतीय फिल्मों, और उनमें हिंदी की मुख्यधारा की फिल्मों का असर मुझ पर भी उसी तरह पड़ा जैसे किसी भी युवा पर पड़ता है।
इस समय 'नागिन' से शुरू हुआ वैजयंतीमाला का सफर 'संगम'तक आते-आते शिखर पर था। पर इसी समय 'मेरे मेहबूब' के देशव्यापी खुमार के बाद "वक़्त"ने साधना की ज़बरदस्त उपस्थिति दर्ज कराई थी। साधना कट बाल और चूड़ीदार की लोकप्रियता के साथ-साथ राजकुमार, आरज़ू,मेरा साया,एक फूल दो माली आदि फिल्मों ने अगले कुछ साल साधना के नाम लिख दिए। मशहूर पत्रिका "माधुरी"ने जब देश भर के पाठकों की राय पर 'फिल्मजगत के नवरत्न' चुने तो राजेश खन्ना और जीतेन्द्र के बाद तीसरा नाम साधना का था और अन्य समकालीन नायिकाओं का दूर-दूर तक कोई ज़िक्र नहीं था।
इस समय वैजयंतीमाला प्रिंस,दुनिया,संघर्ष,आम्रपाली,गँवार आदि के साथ उतार पर नज़र आने लगीं। पालकी,धरती जैसी फिल्मों ने गाइड के बावजूद वहीदा का बाजार ठंडा रखा। सरस्वती चन्द्र,लाटसाहब,सौदागर ने नूतन के बदलते रुझान को अंकित किया।
आशा पारेख, शर्मिला टैगोर,बबिता दौर के उभरते नाम थे।
१९६९ में इंतकाम फिल्म के एक गाने को जब बिनाका गीत माला ने टॉप पर रक्खा,तो इससे तीन बातों की अनुगूँज सुनाई दी। गाना था-"कैसे रहूँ चुप ,कि मैंने पी ही क्या है?"
-बदले की भावना पर एंग्री यंगमैन अमिताभ बाद में जो "युग" लाये उसकी नायिका-प्रधान आधारशिला इसी समय रखी गयी।
-कैबरे,नशे और खलनायिका के लिए आशा भोंसले की सटीक आवाज़ को पहली बाऱ चुनौती लता मंगेशकर ने इसी गीत से दी.
-जिस हेलन के डाँस को बाकी हीरोइनें कुर्सी पर बैठ कर सहती थीँ,वह इस गीत में एक ओर खड़ी रही, और डाँस चलता रहा।
इसके बाद तो हेमामालिनी,मुमताज़,जया भादुड़ी,शर्मिला, रेखा और ज़ीनत अमान ने इतिहास बदल दिया।
सतरंगी यादें .
ReplyDeleteDhanyawad
ReplyDelete:)
ReplyDeleteThanks, Tum kahan ho Mantu?
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