Wednesday, July 2, 2014

जीरे की बोरियाँ

जीरा याद कीजिये।  याद आया न दाल-सब्ज़ी का खुशबूदार तड़का।  जब तक जीरे का छौंक नहीँ लगता तब तक स्वाद छिपा ही रहता है, सामने नहीं आता। यही जीरा जब जलजीरा बनता है तब तो इसका स्वाद संभाले नहीँ संभलता, मुंह में पानी आकर ही रहता है।
तो अब इस जीरे को संभाल लीजिये,ये आपके बहुत काम आने वाला है। हो सकता है यह जल्दी ही महँगा भी हो जाए। क्योंकि जब लोग भर-भर बोरियाँ ख़रीदेंगे तो इसकी किल्लत तो होगी ही। लेकिन जो लोग जीरा उगाएंगे वो मालामाल भी हो जायेंगे।
अब आप जानना चाहेंगे कि आखिर ऐसा क्या हो गया, जो जीरे की इतनी अहमियत?
तो सुनिए, भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में यहाँ के राज्य-पशु गोंडावण की जगह अब "ऊँट" को राज्य-पशु बना दिया गया है। ऊँट राजस्थान में बहुतायत से पाया जाता है, और इसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। रेतीले गाँवों में तो डाक बाँटने का काम भी ऊँटों से लिया जाता रहा है। अब तक लोग ऊँट के मुंह में जीरा डाल कर काम चला लेते थे, लेकिन अब ये राजसी ठाट-बाट वाला प्राणी ख़ाली ज़ीरे से बहलने वाला नहीँ। इसके मुंह में आपको जीरे की बोरियाँ भर-भर डालनी होँगी।
पुराने ज़माने में जब लड़का अपनी पत्नी को ऊँट पर बैठा कर उसके माता-पिता के घर ले जाता था तो वे नाराज़ हो जाते थे और उसे वापस नहीं भेजते थे। तब हार कर लड़के को सजी-धजी बैलगाड़ी ले जानी पड़ती थी।
अब लड़का शान से उसे ऊँट की सवारी करा सकेगा।
कहते हैं कि जब अच्छे दिन आते हैं तो डाकिये को भी राजा बनते देर नहीं लगती।                                 

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