Sunday, July 27, 2014

युद्ध

यह केवल अरब-इज़राइल के युद्ध की बात नहीं है।
यह अमिताभ बच्चन के युद्ध की बात भी नहीं है।
किसी भी "युद्ध" का अस्तित्व-परिस्थितियाँ-अंजाम आखिर क्या बताते हैं?
यह क्यों होता है?
जिस तरह धरती चन्द्रमा या सूर्य के एक दूसरे के सीध में आ जाने से कभी-कभी ग्रहण हुआ करते हैं, ठीक उसी तरह दो व्यक्तियों, समाजों या देशों के विचार एक दूसरे की सीध में आ जाते हैं।  फिर तरह-तरह के प्रयास होते हैं।  कोई एक अपने विचार बदल ले।  कोई दूसरे के विचार को बदलने के लिए उसे प्रेरित कर दे, या कोई तीसरा दोनों के बीच संतुलित मध्यस्थता कर दे।
किन्तु जब ऐसा कोई प्रयास सफल न हो सके, तब युद्ध होते हैं। अतः कहा जा सकता है कि सब कुछ ठीक करने के लिए युद्ध होता है।
इस रूप में तो युद्ध अच्छा है, दुनिया को ठीक रखने के लिए ज़रूरी भी है।
लेकिन इसका एक काला-मैला पक्ष भी है।
इसमें कई निर्दोष लोगों की जानें चली जाती हैं।  विध्वंस के खौफ़नाक मंज़र में माल-संपत्ति का भारी नुक्सान होता है। सभ्यता और विकास वर्षों पीछे चले जाते हैं।
दो लोगों के झगड़े को देख कर यदि सैंकड़ों लोग सबक ले लें, दो देशों की लड़ाई यदि सैंकड़ों देशों को कुछ सावधानियाँ बरतना सिखा दे,तो युद्ध की विभीषिका को भी सहनीय माना जा सकता है। जैसे खेत में अन्न उपजाने के लिए किसान कुछ अन्न के दाने मिट्टी में फेंकता है,जैसे वातावरण को सुगन्धित या पवित्र बनाने के लिए कीमती घी आग में फेंका जाता है, जैसे हज़ारों जान बचाने वाले डॉक्टर को सिखाने के लिए पहले कुछ निर्दोष जानें ली जाती हैं।
लेकिन यदि ऐसा नहीं होता, तो युद्ध बहुत ख़राब है, इसे हर कीमत पर रोकने के लिए युद्ध-स्तर पर प्रयास किये जाने चाहियें।   
         

2 comments:

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