Saturday, July 19, 2014

दुनिया की समीक्षा

गाँव से कुछ दूरी पर यह एक खुला मैदान था। मैदान के एक किनारे पर कुछ लड़के गोलबंद होकर चुपचाप बैठे थे।  नज़दीक ही एक ऊंचे से खजूर के पेड़ पर बने छोटे से घोंसले में एक चिड़िया के बच्चे टुकुर-टुकुर तकते खामोश बैठे थे।
मैदान से सट कर एक सड़क जाती थी और उसके पार उथला सा एक तालाब था।  तालाब के किनारे एक टिटहरी मौन खड़ी थी और फड़फड़ाते कुछ बगुले शब्दहीन जुगाली कर रहे थे।
दलदल के समीप दो कुत्ते बिना हिले-डुले कहीं दूर देख रहे थे।
आसमान में बादलों के पार से शिव और पार्वती रोज़ के भ्रमण पर निकले हुए थे। पार्वती ने अन्यमनस्क होकर कहा-"देखो तो, ब्रह्माजी ने दुनिया बना तो दी, पर इस नीरव सन्नाटे का कोई हल क्यों नहीं निकाला, मन कितना खराब होता है ?"
शिव ने उलाहना दिया-"तुम्हें तो बात का बतंगड़ बनाने की आदत है, लड़कों की बॉल खो गई है, एक लड़का दूसरी लेने गया है, उसके आते ही सब चीखते-चिल्लाते, भागते-दौड़ते दिखेंगे।"       

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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