Wednesday, June 4, 2014

प्रभामंडल लाभ तो पहुंचाएगा ही !

आप एक कारखाने में काम कर रहे मज़दूर को बुलाइये, और उसे एक दिन के लिए काम से छुट्टी देकर एक हज़ार रूपये दे दीजिये।  फिर उससे कहिये कि यह राशि उसके वेतन के अलावा है। वह बाजार जाए और जो चाहे खरीदे।
अब एक ऐसे व्यक्ति को उसके कार्यस्थल से बुलाइये जिसका दैनिक वेतन एक हज़ार रूपये है।उससे कहिये, ये लो तुम्हारा आज का वेतन, बाजार जाकर कुछ भी खरीद सकते हो।
क्या आपको लगता है कि उन दोनों की खरीदारी में कुछ मौलिक अंतर होगा?
अवश्य होगा।  पहला व्यक्ति उस वस्तु पर ध्यान देगा जो उसकी 'नेसेसिटी' से अधिक उसकी इच्छा या आकाँक्षा में है।  जबकि दूसरा व्यक्ति अपनी रोजाना की ज़रूरतों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
बस इसीलिए कहा जाता है कि नेता अपने पुत्रों-पुत्रियों को राजनीति में स्थापित करने के लिए अपनी जगह न सौंपें।
उनकी जगह उन्होंने बनाई है, ये ख़ैरात में नहीं मिली।  इससे वो आएगा, जो चाहिए।  जबकि उनके परिजनों को तोहफ़े की तरह वह स्थान मिल गया।  वे अपने प्रभाव को न कमाए गए धन की तरह खर्च करेंगे।
सच ये भी है कि किसी नेता के परिजन अपने कैरियर के लिए कुछ तो करेंगे।  नेता का प्रभामंडल उसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ तो पहुंचाएगा ही,बशर्ते वह हो।
            
    

4 comments:

  1. आपने सही फ़रमाया , लेकिन वे इस व्यवसाय की अपनी विरासत ऐसे ही नहीं छोड़ना चाहते अपनी पीढ़ियां सुरक्षित करना चाहते हैं और इसीलिए अपने खोटे सिक्के भी एक बार चला देते हैं बाद में चाहे वे चलन में न रहें

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  2. Jan-jagrukta iska samadhan karegi. Aabhaar!

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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