उसी पेड़ की सबसे ऊंची डाल पर बुज़ुर्ग मिट्ठू प्रसाद रहते थे। उम्र थी लगभग सौ वर्ष। दांत तीन बार झड़ कर चौथी बार आ चुके थे। चेहरे पर झुर्रियां इतनी थीं कि सारा हरा रंग मटमैली दरारों में भीतर चला गया था। फितूरी से पड़ौसी होने के नाते अच्छा भाईचारा था। उन्होंने लाजवंती लोमड़ी को पेड़ के नीचे देखा तो उनका माथा ठनका। उन्हें अपने बचपन में देखी वह घटना याद आ गई, जब धूर्त लोमड़ी ने गाना सुन ने के बहाने कौवे से रोटी झपट ली थी। वे शायद पंचतंत्र के दिन थे।
वे आवाज़ लगाकर फितूरी को सावधान करने ही वाले थे कि उनकी आँखें आश्चर्य से फटी रह गईं। लाजो के हाथ में टिफिन था, और वह आवाज़ लगा कर फितूरी को दावत खाने का न्यौता दे रही थी। फितूरी चकित था पर नीचे आकर दमादम खाना खाने लगा। शायद कई दिन का भूखा था। पेट भरते ही डकार लेकर बुआ का शुक्रिया अदा करना न भूला।
ख़ुशी से झूमती लाजो लौट रही थी। दूसरों को खिलाने में कितना सुख है, यह उसने आज जाना था।
उसे मन ही मन यह सोच कर अपार ख़ुशी हो रही थी कि अब जल्दी ही सभी लोग उसके उपकारों की चर्चा करने लगेंगे और उसकी छवि जंगल भर में अच्छी हो जाएगी। उसे अपनी तपस्या का फल जल्दी मिल जाने की पूरी उम्मीद हो चली थी।
लाजो का मन हो रहा था कि उसके पंख लग जाएँ और वह यहाँ-वहां उड़ती फिरे। उसके पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे।
अचानक लाजो ने एक पतली सी आवाज़ सुनी। वह चौकन्नी होकर यहाँ-वहां देखने लगी। उसे कोई दिखाई न दिया।
शायद उसे कोई भ्रम हुआ हो, यह सोच कर वह आगे बढ़ गई। पर थोड़ी ही देर में उसे वही आवाज़ फिर सुनाई दी। नहीं,नहीं, यह भ्रम नहीं हो सकता। अवश्य आसपास कोई है, यह सोच कर वह ठिठक कर खड़ी हो गई। आवाज़ बड़ी पतली थी, और कहीं पास से ही आ रही थी। लाजो ने ध्यान से सुन ने की कोशिश की। कोई बड़ी मस्ती में गा रहा था-
" जो औरों के आये काम, उसका जग में ऊंचा नाम
बोलो क्या कहते हैं उसको, कौन बताये उसका नाम?"
लाजो ने सुना तो झूम उठी। [जारी]
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