रात के खाने, कॉफ़ी और गप्प-गोष्ठी के बाद जब मेहमान लोग सोने के लिए चले गए, किन्जान और पेरिना अपने कमरे में आये, तो दोनों ही कुछ बेचैन से थे। लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि दोनों की बेचैनी अलग-अलग बातों को लेकर थी।
किन्जान पिछले कुछ दिनों से अपने मेहमानों से आश्वस्त सा नहीं था। शुरू के दिन तो इसी उन्माद में कट गए कि वे लोग वुडन और डेला के साथ आए , उनकी कंपनी के लोग हैं, और इसी नाते उनके मेहमान भी हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनसे खुलते जाने के साथ किन्जान को उन पर कुछ संदेह सा होने लगा था। उसे उनकी बातों में दंभ की बू भी आती थी। कुछ ईर्ष्या भी होती थी, तथा शक भी होता था। उसे लगता था कि वे लोग किन्जान को नुक्सान पहुंचाएंगे। वे धीरे-धीरे किन्जान को अपनी बातों से छोटा और उपेक्षित करते जाते थे। सबसे ज्यादा असहनीय तो ये था कि खुद किन्जान की बेटी उन लोगों का साथ देती थी। डेला को उनसे आत्मीयता से जुड़ा देखना किन्जान को सुकून नहीं देता था। वुडन एक तटस्थ तबियत का आत्म-केन्द्रित इंसान था, जिसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि डेला उत्साह के साथ चीनी मित्रों की योजनाओं में शामिल थी, और बातचीत में उनका पक्ष लेती थी।
आरम्भ में युवान में सना या सिल्वा में से एक का जीवन-साथी देखने की बात भी किन्जान के मन से दरकने लगी थी। यद्यपि भविष्य के गर्भ में क्या लिखा था, यह कोई नहीं जानता था। फिर किन्जान को यह भी पता था कि युवान को डेला भी पसंद करती थी।
उधर पेरिना अपनी अलग ही उधेड़-बुन में थी। उसे यह सालता था कि आत्माएं हमेशा स्त्रियों की ही क्यों भटकती हैं? उसने कभी नहीं सुना था कि कोई लड़का या आदमी मर कर भटक रहा हो, ज़्यादातर लड़कियों की आत्माएं ही अतृप्त देखी जाती थीं। तृप्ति कौन बांटता है, उसके क्या मानदंड हैं, वह किसे पूरा जीवन देता है, किसे अधूरा, यह अगर किसी किताब में लिखा होता तो पेरिना सारी रात जाग कर उसे पढ़ती। लेकिन फिलहाल ऐसी कोई किताब नहीं थी, और इसलिए पेरिना का ध्यान इस बात पर चला गया कि वह सुबह नाश्ते में मेहमानों को क्या परोसेगी?
उसने किन्जान को यह भी बताया कि डेला ही नहीं, बल्कि मेहमानों को भी उनके नए कमरे काफी आकर्षक और आरामदेह लगते हैं, जिनके लिए वे किन्जान की तारीफ करते नहीं थकते। सना और सिल्वा भी मेहमानों से बहुत प्रभावित हैं, और उनके देश में घूमने जाने के लिए लालायित हैं। और तब किन्जान को लगता कि कहीं उसने अतिथियों के बारे में अपनी धारणा ज़ल्दबाज़ी में तो नहीं बना डाली है।
अगली सुबह बगीचे में चाय पीते हुए जब मिस्टर हो ने किन्जान को अपने साथ चाइना चलने का निमंत्रण दिया तो किन्जान अभिभूत हो गया। यह औपचारिकता समय से काफी पहले अभिव्यक्त हो गई है, यह किन्जान को भी पता था, और हो को भी...[ जारी ...]
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