न्यूयॉर्क के विमानतल पर जब वुडन , डेला और उनके तीन चाइनीज़ मित्र उतरे तो सना और सिल्वा फ़ुल झड़ियों की तरह चटकने लगीं। शायद वो मौसम के सबसे खुशगवार फूल थे, जिनके गुलदस्ते दोनों ने मेहमानों को भेंट किये। दोनों लड़कियों की आँखों ने टकटकी लगा कर उस सुदर्शन पुरुष को देखा, जो उनका पिता था। मां की उपस्थिति को तो जैसे वे अंजुरी में भर कर पी ही गईं।
कुछ देर बाद सिल्वा उस शानदार कार के स्टीयरिंग पर थी, जो सब को लेकर बफलो की ओर दौड़ रही थी। साठ बरस के हो, सत्तावन के चुम और इक्कीस साल के युवान , दौड़ती गाड़ी की खिड़की से सरकते अमेरिकी नज़ारे निहारने में बिलकुल बच्चे बने हुए थे। डेला और सना एक दूसरे के कान में लगातार अंडे फैंट रही थीं। उनके पास समय और लफ्ज़ कम थे, बातें बहुत ज्यादा।
वुडन को तो यह ख्याल ही मादक लग रहा था, कि जिस बेटी को वह नर्म बिल्ली के बच्चे सा छोड़ कर गया था, वह फर्राटे से गाड़ी चलाती उसे बफलो की ओर ले जा रही थी।
अगले कुछ पल तीनों मेहमानों ने ताबड़तोड़ फोटोग्राफी में बिताये।
पेरिना और किन्जान ने मेहमानों का जिस गर्मजोशी से स्वागत किया, वैसा स्वागत चीन को अमेरिका से, या अमेरिका को चीन से स्वप्न में भी नसीब नहीं हुआ होगा। शर्मीले युवान को सना और सिल्वा जैसे दोस्तों के साथ ने प्रवास को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बफलो शहर दो भागों में बटा हुआ था, एक तरफ तो स्थानीय लोगों की बहुतायत थी, दूसरी ओर दुनिया के तमाम देशों के सैलानी फैले हुए थे, जहाँ नायग्रा फाल्स देखने आने वालों का जमघट रहता था। उसी के अनुपात में विभिन्न लोगों ने अपने-अपने देश के लोगों को खान-पान की सुविधाएँ देने के लिए अपने रोज़गार जमा रखे थे।
मिस्टर हो ने किन्जान को बताया कि वे शंघाई के समीप एक छोटे कसबे में बने एक स्टेडियम के मालिक थे, जहाँ वे बच्चों को खेलों की नामी-गिरामी स्पर्धाओं के लिए तैयार करते थे। दूध पीते छोटे बच्चों को कद्दावर युवा खिलाडियों में बदलना उनका शौक ही नहीं, बल्कि व्यवसाय था। मां -बाप अपने बच्चों को उन्हें सौंप कर उनके सुनहरे भविष्य के लिए निश्चिन्त हो जाते थे। वे भी बच्चों के शरीर को फौलाद का बनाने में कोई कोर- कसर नहीं छोड़ते थे। वे खेल को शौक से उठा कर मुहिम में बदलते थे, और अपने हुनर और धैर्य का मोटा मोल वसूलते थे। मिस्टर चुम खेलों के अंतर राष्ट्रीय फायनेंसर थे। सना और सिल्वा को यह जान कर बहुत मज़ा आया कि युवान इंटर-नेशनल स्तर का तैराक है।
इन मेहमानों की कंपनी बच्चों को भर्ती करके बिलकुल प्रचार के बिना गुप्त स्थान पर प्रशिक्षण देती थी, और जब बच्चों की कोई बड़ी उपलब्धि हो जाये, तभी उन्हें सामने लाया जाता था। पूरा परिवार सभी मेहमानों से अच्छा-खासा घुल-मिल गया। दिन दौड़ने नहीं, उड़ने लगे...[जारी...]
No comments:
Post a Comment