लाजो ऊंची आवाज़ में गाकर बोली-
"जो औरों के आये काम, उसका जग में ऊंचा नाम
सारे उसको लाजो कहते, लाजवंती उसका नाम"
लाजो अभी झूम-झूम कर गा ही रही थी, कि उसके कान में सुरसुरी होने लगी। और तभी कान से एक छोटा सा झींगुर कूद कर बाहर निकला। झींगुर तुरंत लाजो के सामने आया और बोला- बुआ , पहचाना मुझे ! मैं हूँ दिलावर, बख्तावर का दोस्त ! अरे बुआ जी , आप तो बड़ा मीठा गाती हो !
-सच ! कहीं झूठी तारीफ तो नहीं कर रहा? लाजो शरमाती हुई बोली।
-लो, मैं भला झूठी तारीफ क्यों करने लगा। पर बुआ, झूठा तो वो मेरा दोस्त बख्तावर है, कहता था कि अब लाजो बुआ कभी गाना नहीं गाएगी। उसने तप करके वरदान पाया है।
लाजो अचानक जैसे आसमान से गिरी। ये क्या हुआ ! उसे तो गाना गाना ही नहीं था। अब तो उसे मिला वरदान निष्फल हो जायेगा। वह निराश हो गई। पर अब क्या हो सकता था, जब चिड़िया खेत चुग गई। रोती -पीटती लाजो घर आई। उसने सोचा कि वह इस तरह हार कर नहीं बैठेगी। उसने अगले दिन बड़े तालाब पर जाने का निश्चय किया जहाँ बसंती और दलदली घोंघे रहते थे।
लाजो ने हठ न छोड़ा। उसने मन ही मन ठान लिया कि वह अब इन अंगूरों को खट्टे समझ कर दूर ही से नहीं छोड़ेगी, और इन्हें किसी भी कीमत पर चख कर ही रहेगी। उसने कठिन तपस्या करके वरदान पाया था। एक बार उससे चूक हो भी गई तो क्या, वह दोबारा कोशिश करेगी। यह सोच कर वह तैयार होने लगी। [जारी]
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