लोमड़ी बोली- पर यह कितनी गलत बात है। सत्यानाश हो इस मुए पंचतंत्र का, जिसने हमारी छवि बिगाड़ कर रख दी है। युग बीत गए पर ये इंसान आज भी हमें वैसा का वैसा ही समझते हैं। अरे ये खुद भी तो तब से इतना बदले हैं, तो क्या हम नहीं बदल सकते। हमें अभी तक सब बुरा ही समझते हैं। चाहे जो हो जाए, मैं तो यह सब नहीं सह सकती।
-पर तुम करोगी क्या बुआ। अकेला चना क्या भाड़ फोड़ सकता है।
-बेटा, एक और एक ग्यारह होते हैं। तू मेरा साथ दे फिर देख, मैं कैसे सबकी अक्ल ठिकाने लगाती हूँ। मैं ऐसा काम करुँगी कि धीरे-धीरे सब जानवरों की छवि बदल कर रख दूंगी, ताकि कोई हमारे जंगल पर अंगुली न उठा सके। बोल, तू मेरा साथ देगा न ?
-बुआ साथ तो मैं दे दूंगा, पर देखना कहीं ज्यादा चालाकी मत करना, वरना लोग कहेंगे- वो आई चालाक लोमड़ी। बख्तावर यह कह कर हंसने लगा।
-चल हट, शरारती कहीं का। मेरा मजाक उड़ाता है। मैंने तो समझा था कि तू ही समझदार है, तू मुझे कोई ऐसा रास्ता बतायेगा जिससे मैं सबका भला कर सकूं।
बख्तावर गंभीर हो गया। बोला- अरे, अरे, तुम तो नाराज़ होने लगीं। मैं तुम्हें उपाय बताता हूँ, सुनो। तुम ऐसा करो कि एकांत में बैठ कर , अन्न-जल छोड़ कर तपस्या करो। तप करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं, और वे खुश होकर मनचाहा वरदान दे देते हैं। जब देवी-देवता प्रसन्न हो जाएँ तो तुम उनसे कह देना कि तुम सब पशु-पक्षियों की छवि सुधारना चाहती हो, वो ज़रूर तुम्हारी मदद करेंगे।
लाजो की आँखें एक पल को चमकीं , लेकिन फिर वह बोली- पर देवी-देवता हम जानवरों की क्यों सुनेंगे। उनकी पूजा तो सैंकड़ों इंसान करते रहते हैं।
-ओ हो बुआ, तुम भी अजीब हो। हम इंसानों के देवी-देवताओं की पूजा क्यों करेंगे, हमारे अपने भी तो देवता हैं।
-सच! ये तो मुझे मालूम ही न था। कौन से हैं वे?
बख्तावर बोला- वे भी इंसानों के देवताओं के साथ देवलोक में ही रहते हैं।
-क्यों मज़ाक करता है? लाजो फिर बुझ गई।
-अरे मैं मज़ाक नहीं कर रहा बुआ ! तुम्हें पता है...[जारी]
No comments:
Post a Comment