लाजो ने मन ही मन यह निश्चय किया कि वह कल से रोज़ किसी न किसी जीव - जंतु के पास जाएगी और सेवा व त्याग से उसकी छवि को निखारने की कोशिश करेगी। उसने मन ही मन इस बात की भी गांठ बाँध ली कि कुछ भी हो जाए, उसे किसी भी कीमत पर गाना नहीं गाना है।
उसने सोचा कि वह अगली सुबह सबसे पहले "फितूरी कौवे" से मिलने जायेगी। फितूरी तमाम जंगल में बहुत बदनाम था। उसकी छवि अच्छी नहीं थी।
लाजो ने उस रात भरपेट भोजन किया , और आराम से सोने के लिए अपनी मांद में चली गई।
लाजो की आँख आज पौ-फटते ही खुल गई।
उसने मन ही मन एकबार भगवन मूषकराज का स्मरण किया और हाथ-मुंह धोने तालाब पर चली आई।
आज उसे फितूरी कौवे से मिलने जाना था। वह सुन चुकी थी कि फितूरी को लोग अच्छा नहीं समझते थे। वह जहाँ भी जाता , दूर ही से उसे देख कर शोर मच जाता, कि आ गया काना फितूरी, सब छिपा लो खीर-पूड़ी।
सब समझते थे कि फितूरी खाने-पीने का बेहद शौक़ीन है। और सारा माल मुफ्त में खाना पसंद करता है। वह जिस किसी को कुछ भी खाते देखता, उसी से खाना छीन-झपट कर उड़ जाता। इतना ही नहीं, बल्कि लोग कहते थे कि उसकी आँखों में एक ही पुतली है। उसी को मटकाता हुआ वह कभी इधर देखता, कभी उधर। इसी से सब उसे काना कहते थे।
लाजो ने सोचा कि जब वह फितूरी से मिलने जाएगी तो उसके लिए बढ़िया-बढ़िया , तरह-तरह का खाना बना कर ले जाएगी। आज वह उसे जी-भर कर खाना खिला देगी। वह खाने से इतना तृप्त हो जायेगा कि फिर वह किसी से छीन कर खाना भूल ही जायेगा। फिर सब कहेंगे कि फितूरी रे फितूरी सुधर गया, माल उड़ाना किधर गया?
मन ही मन लाजो ने सोचा कि फिर फितूरी मेरी प्रशंसा करेगा। और खुश होकर मुझे दुआएं देगा। लोग उसे भी बुरा नहीं कहेंगे।
यह सब सोचती लाजो तैयार होकर अपनी रसोई में आई।
मगर लाजो तो ठहरी लाजो ! [ जारी ]
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