नदी के किनारे बहुत सारे लोग जमा थे, जिससे नगर से काफी दूर का यह इलाका भी लोगों के पैदा किये गए कोलाहल से किसी घनी बस्ती सा लग रहा था। किनारे को पुलिस की गाड़ियों ने पूरी तरह से घेर लिया था। किसी को नज़दीक नहीं जाने दिया जा रहा था। अब तक कोई शव नहीं मिला था, लेकिन गोताखोरों की पूरी टीम जी-जान से इसमें लगी हुई थी। पानी के बहाव के विपरीत जाते हुए उस छोटे जहाज का कोई चिन्ह पानी की सतह के ऊपर दिखाई नहीं दे रहा था। पुलिस अधिकारियों के लिए भी यह मामला पेचीदा बन गया था, क्योंकि बिना किसी मानवीय भूल के ऐसा हादसा होना कतई संभव नहीं था। कुछ एक प्रत्यक्ष-दर्शियों का कहना था, कि शायद शिप में किसी नौका-अभियान दल के सदस्य थे, क्योंकि शिप की रफ़्तार और इसमें बैठे लोगों के अन्य साहसिक कारनामों के चलते इस जल-यान ने सभी का ध्यान आकर्षित किया था। शिप में लगभग आधा दर्ज़न लोगों के होने का अनुमान लगाया जा रहा था, जिनमें कुछ महिलाएं भी थीं।
लगभग ढाई-घंटे की मशक्कत के बाद गोताखोरों ने तेज़ धार से जो पहला शव खोज निकाला, वह किसी चीनी प्रौढ़ व्यक्ति का दिखाई देता था। इससे बाकी के शव भी जल्दी ही मिल जाने की सम्भावना बलवती हो गई थी। एक शव के सहारे दल के लोगों की पहचान होना भी सुगम हो गया था।
बफलो में जिस जगह से वह शिप लिया गया था, वहां से यह आसानी से पता चल गया कि यह वही बदनसीब लोग थे, जो किन्जान के घर उसके मेहमान बन कर ठहरे हुए थे। और उन्हीं तीनों चाइनीज़ मेहमानों के साथ-साथ दुस्साहसी पेरिना और डेला की जिंदगी भी स्वाहा हो गई.
इस खबर के घर पहुँचते ही कोहराम मच गया। सना और सिल्वा रोते-बिलखते हुए भी यह नहीं भूल सकीं, कि उनके जिद करने के बावजूद भी किन्जान ने उन्हें जाने की अनुमति नहीं दी थी। वही भेंट में मिली जिंदगी पूरी ताकत से लेकर वे दोनों किन्जान के साथ बदहवास सी दुर्घटना-स्थल की ओर दौडीं .
अगली सुबह सफ़ेद वस्त्रों में शांति से एक चर्च में खड़ी सना और सिल्वा एक साथ बार-बार मन ही मन उस दृश्य को याद कर रही थीं, जब वे नदी किनारे दुर्घटना स्थल पर पहुँचीं थीं। उनके ज़ेहन में यह ख्याल भी एक साथ, मगर बार-बार आ रहा था, कि सारे माहौल में किन्जान क्यों बार-बार पुलिस से बचने की कोशिश करता रहा। इतना ही नहीं, शिप जहाँ से लिया गया था, वहां के कर्मचारियों ने भी बार-बार ऐसा संदेह जताया था कि यह एक स्वाभाविक दुर्घटना नहीं है। लेकिन कोई नहीं था जो स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह होने से रोके। एक मशीन विफल करार देकर जल-समाधि में छोड़ दी गई थी, कुछ इंसान अपने-अपने भाग्य का नाम देकर बहते पानी में मिला दिए गए थे। तेज़ी से बहता पानी "बीती ताहि बिसार दे" गुनगुनाता न जाने कहाँ तक चला गया था, जो कुछ बच गया, वही संसार था। फिर चल निकला...[ जारी ...]
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