घर में इतनी वैचारिक उथल-पुथल होती, और इसका अहसास तक मेहमानों को न होता, ऐसा कैसे हो सकता था। विद्रोह और असहमति की हवा वैसे भी नुकीली तासीर वाली होती है, मिस्टर हो, चुम और युवान को भी अपने मेज़बान-खाने में दाल में काला नज़र आने लगा।
उनकी खुसर-पुसर भांप कर जब डेला और पेरिना उनके कमरे में पहुँचीं, तो वे गंभीर होकर वहां से किसी होटल में शिफ्ट करने की बात कर रहे थे। पेरिना ने माहौल को हल्का और विश्वसनीय बनाने के लिए उन लोगों को आत्मीयता से निश्चिन्त रहने के लिए कहा, और साथ ही सबका मूड बदलने के लिए अगले दिन पिकनिक का कार्यक्रम भी बना लिया। मेहमानों के माथे से संदेह की लकीरें वापस धुंधला गईं।
तय किया गया कि वे लोग अगली सुबह हडसन नदी में सैर के लिए जायेंगे। एक शिप द्वारा नदी में लम्बी यात्रा के काल्पनिक आनंद ने सबका जी हल्का कर दिया। किसी वेगवती नदी के उलटे बहाव में लम्बी दूरी तय करने का अनुभव भी चुनौती-पूर्ण होता है, उसी की तैय्यारियाँ शुरू हो गईं।
सुबह सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह हुई कि किन्जान ने सना और सिल्वा को उन लोगों के साथ जाने की अनुमति नहीं दी। वे दोनों एकाएक समझ नहीं सकीं कि इस पाबन्दी का क्या अर्थ है। किन्जान से तो साथ चलने के लिए वैसे भी कहा ही नहीं गया था, क्योंकि पेरिना और डेला , दोनों ही भली भांति समझ चुकीं थीं, कि किन्जान को मेहमानों का साथ रास नहीं आने वाला, और मेहमान भी उसकी उपस्थिति में सहज नहीं रहने वाले।
डेला ने उनके मिशन के अवश्य जारी रहने का ऐलान करके जो आग लगाईं थी, पेरिना ने साथ चलने की दृढ घोषणा करके उस आग में घी डालने का काम ही किया था। इससे किन्जान अलग-थलग और उपेक्षित महसूस कर रहा था। लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था, कि इसका बदला वह सना और सिल्वा को रोक कर बचकाने तरीके से लेगा। उसके इस निर्णय से युवान का चेहरा भी उतर गया था, लेकिन वह माहौल की गंभीरता को देख कर यह भी नहीं कह पा रहा था,कि सना और सिल्वा के न जाने की स्थिति में वह भी उन लोगों के साथ नहीं जाना चाहेगा। 'युवावस्था ' भी एक जाति होती है, और इस बिना पर युवान सना और सिल्वा को करीबी पाता था।
डेला ने एक बार किन्जान की उपेक्षा करते हुए सना और सिल्वा को चलने का आदेश दे डाला। उसे यकीन था कि इससे किन्जान अपना क्रोध भूल कर डेला का दिल रखते हुए अपनी बचकानी जिद छोड़ देगा, और बच्चियों को जाने की अनुमति दे देगा। बच्चियां खुद भी अपने सम्बन्ध में निर्णय औरों द्वारा लिए जाने पर अपमानित महसूस तो कर ही रही थीं, मगर किन्जान के गंभीर क्रोध को भांप कर कुछ तय नहीं कर पा रही थीं। उन्हें मेहमानों के सामने कोई कटु-प्रदर्शन न हो जाने की चिंता भी थी। लेकिन शायद यह चिंता उनकी माँ डेला को नहीं थी...[जारी ...]
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