आज लाजो को बड़े तालाब पर जाना था। वहां बसंती और दलदली घोंघे रहते थे। दोनों भाई बेचारे बड़े मासूम थे। पर न जाने कब से लोगों ने दोनों ही को फ़िज़ूल बदनाम कर रखा था। तालाब के सब प्राणी दोनों का इतना मजाक उड़ाते थे कि किसी भी सुस्त और बुद्धू प्राणी को सब घोंघा बसंत ही कहने लगे थे। अब दलदल में रहने वाले तेज़ तो चल नहीं सकते थे, पर लोग थे कि बेबात के बेचारों की चाल का मजाक उड़ा कर मिसाल देते थे। किसी भी धीमे चलने वाले को देख कर कहते, क्या घोंघे की चाल चल रहा है। यहाँ तक कि कोई-कोई तो उन्हें ढपोरशंख कहने तक से न चूकता। यह हाल था जंगल भर में उनकी छवि का।
लाजो को आज उनसे मिलना था। वह चाहती थी कि उनकी बिगड़ी छवि को सुधारे। लाजो ने रात को ही सब तय कर लिया था। उसने सोचा था कि वह बसंती और दलदली दोनों भाइयों के लिए ऐसे जूते लेकर जाएगी जिन्हें पहन कर वे तेज़ चाल से चलने लगें। आजकल बच्चों में पहिये वाले 'स्केटिंग जूते' बड़े लोकप्रिय थे। इन्हें पहन कर बच्चे हवा से बातें करते थे। लाजो बसंती और दलदली के लिए ऐसे ही जूते तलाशने की फ़िराक में थी।
आज लाजो ने हल्का नाश्ता ही लिया था। उसे पूरी उम्मीद थी कि बसंती और दलदली उसके उपकार से खुश होकर उसे कम से कम भरपेट भोजन तो करवाएंगे ही। बड़े तालाब की मछलियों की महक याद करके लाजो के मुंह में पानी भर आया।
अब लाजो इस उधेड़-बुन में थी कि ऐसे जूते कहाँ से हासिल करे। बाज़ार में कोई उसे एक पैसा भी उधार देने वाला न था। शू -पैलेस वाली बकरी अनवरी तो उसे दूर से देखते ही दुकान का शटर गिरा लेती थी।
लाजो को सहसा अपनी वनविहार वाली सहेली मंदोदरी का ख्याल आया। हिरनी मंदोदरी के यहाँ अभी कुछ दिन पहले ही पुत्र का जन्म हुआ था। मन्दू अवश्य ही उसके लिए तरह-तरह के जूते लाई होगी, लाजो ने सोचा। हिरनी को अपने बेटे को तेज़ दौड़ना जो सिखाना था। लाजो मन ही मन प्रसन्न होती मन्दू के घर की ओर चल दी। छोटे बच्चों के जूते-कपड़े छोटे भी तो जल्दी-जल्दी हो जाते हैं, तो भला दो जोड़ी छोटे-छोटे जूते देने में मन्दू को क्या ऐतराज़ होता। मन्दू ने बेटे के स्केटिंग जूते लाजो को दे दिए।
जूते पाते ही लाजो ने एक पल भी वहां गंवाना उचित न समझा। वह तेज़ क़दमों से बड़े तालाब की ओर चल दी। [जारी]
kshma karen, google par transliteration suvidha uplabdh nahin hone ke karan aap aage ki kahani nahin sun paa rahe hain. asuvidha ke liye khed hai.
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