घर का वातावरण जैसे बुझ सा गया। डेला समझ नहीं पा रही थी, कि मेहमानों को क्या कह कर, और कैसे रोके? जिस बात के लिए वह खुद इतने समय से सबके पीछे पड़ी थी, और जिसे अपनी जिंदगी का मिशन बताती थी, अब भला कैसे उससे अपने कदम पीछे खींचे? उसके मेहमान क्या सोचेंगे। क्या अमेरिकी जुनून और आयोजना यही है!
किन्जान ने अपने मन की बात चाहे जिस तरह कही हो, लेकिन वह भी आखिर अनुभवी बुज़ुर्ग हो चला था। उसे यह लगातार चिंता थी कि उसके कारण डेला अपनी मित्र मण्डली में किसी भी तरह नीचा न देखे। यह ज़रूरी था कि उसे समझदारी से इस दुविधा से निकालना था।
एक रात सबके सो जाने के बाद किन्जान ने बेहद आत्मीयता से डेला को अपने पास बुला कर समझाया कि वह इस मिशन को किसी जलन या ईर्ष्या की भावना से रद्द नहीं करवाना चाहता, बल्कि उसने तो बहुत व्यापक स्तर पर इस बारे में सोचा है, कि यह मिशन उनके देश के लिए भी गौरव-पूर्ण नहीं है। किसी और देश के लोग हमारी मदद से यहाँ आकर , हमारे मेहमान बन कर उस कारनामे को अंजाम दें , जो बरसों से हमारे देश के भी कई लोगों का सपना रहा है, तो यह ठीक नहीं है।
लेकिन डैडी , यह किसी देश की सफलता का सवाल नहीं है, यह तो प्रकृति पर इंसान की जीत दर्ज करने का प्रयास है, और इंसान कहाँ पैदा हुआ, और उसकी परवरिश कहाँ हुई , यह कहाँ महत्त्व-पूर्ण है? डेला ने बहुत बुनियादी सवाल उठाया। वह बोली- आप ही तो कहते थे कि मेरी दादी भारत में पैदा होकर अरब में आई, फिर सोमालिया में शादी करके अमेरिका में रही। ऐसे में उसकी किसी भी उपलब्धि से कौन सा देश गौरवान्वित होगा? फिर सब देशों के सब लोग एक सी मानसिकता वाले भी कहाँ हैं ? एक ही देश के एक आदमी के काम से उसी देश के दूसरे आदमी का सर झुक भी जाता है, और गर्व से उठ भी जाता है। राष्ट्रीयता अल्टीमेट नहीं है। अंतिम केवल इंसानियत है।
बच्चे कितनी ज़ल्दी बड़े हो जाते हैं, ज्यादा समझदार भी, किन्जान सोच रहा था। लेकिन उसका मन अब भी इस बात के लिए तैयार नहीं था, कि चीन से आया दल इस महा-मुहिम को पूरा करे। उसे लगता था कि डेला के उन लोगों के साथ होने पर भी इस सफलता का सारा श्रेय चीनी सदस्यों को ही मिलेगा, क्योंकि डेला वैसे भी वहां नौकरी कर रही है, और वहीँ से इन लोगों के साथ, इसी अभियान के लिए आई है।
रात को काफी देर तक किन्जान और डेला के बीच विवाद-विमर्श चलता रहा। डेला भी कमोवेश अपनी बात पर कायम थी, और किन्जान भी अपने अड़ियल रुख से डिगा नहीं था।
लेकिन जैसे कभी-कभी हम किसी पंछी को पुचकारने के लिए उसके बदन पर प्यार से हाथ फेरते हैं, और वह बदले में पलट कर हमें चौंच मार देता है, ठीक वैसे ही अगली सुबह ने किन्जान को जैसे काट लिया। अगली सुबह पेरिना ने भी सार्वजानिक घोषणा कर डाली कि वह भी उन लोगों के साथ इस साहसिक अभियान पर जाएगी...[ जारी ...]
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